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चय सम्यग्दृष्टि मनुष्य ही उपजें हैं। इति देव जागति । भागे नरक की आगति-जागति कहिए है-तहां नारको जोव मरि रोती जगह मैं उपजै सो कहिए है—प्रथम लगाय छठे नरक पर्यन्त के जीव निकस, मनुष्य तिथंच कर्म-भूमि के ही होंय और सातवें नरक का निकस्या पंचेन्द्रिय-सैनो-तिर्यच हो होय है और विशेष यह है ।
२४० जो पहले-जे-तीजे नरक का निकस्या कोई जीव सम्यग्दृष्टि तीर्थङ्कर भी होय है। चौथे नरक का निकस्या तीर्थङ्कर नहीं होय है, चरम शरीरी होय तौ होय और पञ्चम नरक का निकस्या, चरम शरीरो नहीं होय महाव्रत धरै तौ धरै और छठे नरक का निकस्था, संयमी नहीं होय हैं और विशेष रातो जो नारकी, असैनी मैं नहीं उपजे हैं। इति नारकी जागति। आगे नरक मैं श्रागति कहिये है-नरक में एती जगह के जाय हैं, सो कहिये हैंप्रथम नरक मैं तौ सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच-पंचेन्द्रिय सैनी ए जाय हैं और मनुष्य, पंचेन्द्रिय-सेनी तिर्यच अरु जल का उपज्या सर्प ए दूसरे नरक पर्यन्त जाय हैं। मनुष्य, तिर्यंच, अजगर तथा काला फणधारी सर्प र चौथे नरक पर्यन्त उपजै हैं और मनुष्य, तिर्यच, नाहर र पञ्चम नरक पर्यन्त उपजे हैं और मनुष्य, तिर्यंच, स्त्री छठे नरक पर्यन्त उपज हैं। मनुष्य अस तिर्यक सातवें नरक यति सालों से प्रगति जानना। इति नरक में आगति । आगे मनुष्य गति में आगति कहिये है। मनुष्य गति में रातो जगह के आवै सो कहिये है। तहां सातवें नरक के निकसे और अग्निकाय, वायुक्राय, भोग-भूमि के मनुष्य, तिर्यञ्च इन बिना सर्व जगह के जीव आय मनुष्य गति मैं उपजे हैं। इति मनुष्य मैं आगति। आगे मनुष्य को जागति कहिये है। तहाँ मनुष्य कहाँ-कहाँ जाय उपजैं, सो कहिये हैं। सो मनुष्य भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष सोलह ही स्वर्ग मैं व सर्व अहमिन्द्र देवन मैं उपजें। सातों ही नरकों में उपजें और पृथ्वी, आप, तेज, वायु, वनस्पति, बैन्द्रिय, तेन्द्रिय, चौहन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, सैनी, असैनी, तिर्यंच-इन सर्व स्थानन में मनुष्य उपजें हैं और भोग-भमिया मनुष्य, तिर्यच कर्म-भूमियो मनुष्य और मोक्ष आदि सर्व स्थानक मैं मनुष्य उपजे हैं। ऐसा तीन लोक मैं अरु च्यारि गति मैं कोई स्थान शुभ-अशुभ रह्या नाहों जहाँ मनुष्य नाही जाय। सो मनुष्य कू सर्व स्थान खागार (घर)है। इति मनुष्य जागति। आगे तिर्यंच की जागति कहिये है। तहाँ एकेन्द्रिय पंचस्थावर विकलत्रय ये
कर देव, नारकी भौग-भूमिया-मनुष्य, तिर्थव इन विषं नाहीं उपजें हैं। इन बिना कर्म भूमि के मनुष्य, ।।