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याका नाम वचन आजीविका है और जे अनेक रतन, अशर्फी, रुपैया परख देना। परखाई लेने की प्रजोविका करनी सो दृष्टि आजीविका है और अपने तनतें कष्ट करि, पराया कार्य कर देना । जैसे— लौकिक में हम्माली आदि शीश गांठ भरि धरि आजीविका करें, सो कष्टी आजीविका है। ए कही जी च्यारि प्रकार आजीविका सो सामान्य पुरा लगा विशेष पुण्य पर्यन्त अरु नीच कुली तैं लगाय ऊँच कुली पर्यन्त, सामान्य ज्ञानी हैं लगाय विशेष ज्ञानी पन्त जे धर्मात्मा जीव नोरी, पूर, हिंसा आरम्भ भयभीति ते सन्तोषी गृहस्थ - इन च्यारि प्रकार शुभ वाणिज्य करि आजीविका करें, सो उपादेय है । इत्यादिक किसब (व्यापार) जल, अग्नि आदिक बड़े आरम्भ रहित हैं। चोरी, झूठ, हिंसा रहित हैं। ताते निर्दोष हैं और यही झूठ, चोरी आदि सहित होंय, तो य ही पाप करता होय, सो हेय होय। जैसे- होरा, मोती, रतन का व्यापार करनहारा, द्रव्य लगाय, लोभ निमित्त धरती खुदाय कढ़ावै । तो पाप बन्ध करता, आरम्भी व्यापार होय । चाँदी सुवर्ण का वाणिज्य करनहारा. बहु आरम्भ- अग्नि तपाधना, जलाना, फूंकना, धोंकनादि आरम्भ सहित होय, तौ अयोग्य है, देय है तथा सुजीवाला पराया वस्त्रादि चोरै, तो सूजी आजीविका भी सदोष होय दलालीवाला बहुत झूठ बोलि लेने-देनेवाले का बहुत मालधन ठिगावै तौ वचन जाजीविका मैं भी दोष लागें, पाप होय। दृष्टि आजीविकावाला अपने लोभ कं भलाबुरा परखे, तौ चोरी के दोष सहित होय और कष्टी आजीविकावारा भी लोमाचारी होय पराये गठिया का माल लेय तौ चोर के दोष सहित होय । तातें दोष सहित तौ सर्व हो हेय हैं। परन्तु दीर्घ तृष्णा रहित, पाप तैं डरनेहारे भव्यन कूं, रतन- सुवर्णादिक, सूजी आजीविका, दृष्टी आजीविका वचन आजीविका, कष्टी आजीविकाए कहे जो किसब सो सुखकारी हैं। आप परकौं हितकारी हैं। तातें धर्मात्मा जीवन करि उपादेय हैं। यह लौकिक व्यापार कहे । जब निश्चय शुभाशुभ व्यापार कहिये है। तहां राग-द्वेष क्रोध, मान, माया, लोभादि कषाय-भाव, मिथ्यात्व-भाव निशदिन आतरौद्र परणति का रहना, शोक चिन्ता-भाव जादि भावन का व्यापार, सो हेय है और सम्यक सहित आत्मिक-भाव, पर-वस्तु के त्याग का भाव, तप-संयमादि भावन की सदैव परगति, सोए शुभ व्यापार हैं, निश्चय उपादेय है। ऐसे विवेकी जीवन कूं अनेक नयन करि, व्यापार भेद जानना योग्य है। कृति शुभ वाणिज्य | आगे अशुभ वाणिज्य कहिये है। जहाँ अग्नि-जल का बहुत आारम्भ
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