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जसंच्यात के प्रमारा में असंख्यात लोक प्रमाण जानना और संख्यात वृद्धि में उत्कृष्ट संख्यात है। ऐसी अधिकताहीनता करि षट् गुण हानि-वृद्धि जानना। ऐसे घट स्थान पतितन की हानि-वृद्धि होते असंख्यात लोक को अन्त की हानि-वृद्धि पूरी होते एक भेद घाट परन्त सर्वए पर्याय समास ज्ञान के भेद जानना।२। आगे अक्षर-ज्ञान कहिये है । सो वय पर्याय समास के अन्त मैद मैं एक भेद और मिलाईये तब अक्षर-ज्ञान है। सो यह अर्थात्तर नाम ज्ञान है । सो सर्वश्रुत-ज्ञान के संस्थातव भाग यह अक्षर-शान है।३। और याके आगे एक-एक अक्षर-ज्ञान की बधवारी होते एक अक्षर घाटि पद अक्षर पर्यन्त ज्ञान बधै, वहां लौ अक्षर-समास-ज्ञान कहिये। ४। आगे या अक्षर-समास-ज्ञान के अन्त मेद में एक अक्षर और मिलाये पद-ज्ञान होय है। । आगे पद-ज्ञान का प्रमाण कहिये है। सो यह तीन प्रकार है-अर्थ-पद, प्रमाण-पद और मध्यम-पद-ये तीन भेद हैं। तहाँ ऐसा कहना जो "अग्निमानय"। याके पद है, दोय अग्निम और जानय। याका अर्थ ऐसा जो अग्नि आनि देओ। इत्यादिक अर्थ जिन अक्षरन निपज, सो अर्थ पद कहिये और कहिये जो "नमः श्रीवर्द्धमानाय"। याका अर्थ यह जो श्रीवर्द्धमान स्वामी को नमस्कार हो । यह आठ अक्षरन का पद भया। सो याका नाम प्रमाण पद है और सोलासौ चौतीस ! कोड़ि तियासी लाख सात हजार आठसौ अध्यासी अपुनरुक्त बतरन का एक पद होय। सो यह मध्यम पद है। ५। इस पद के ऊपर एक-एक अक्षर ज्ञान बघता-बघता एक पद जितने अक्षर बधैं तब पद झान दुना होय है। थातें एक-एक अत्तर और बढ़चा सो बधते-बधते एक पद अक्षर बधे, तबज्ञान तीन गुणा होय। ऐसे ही अनुक्ररकों लिये एक-एक अक्षर बढ़ते पद होंय तब चौगुणा पद ज्ञान, पंचगुणा, षट् गुणा ऐसे ही संख्यातहजार पद ज्ञान जितने अक्षर में एक अक्षर ज्ञान घटाय तहां ताई पद समास के मेद जानना।६। या राशि विर्षे एक !! अक्षर और मिलाये संघात-ज्ञान होय है। ७1 सो इस ज्ञानत च्यार गति में तं एक गति निरूपण सम्पूर्ण करें, सो संघात नाम श्रुत-ज्ञान है। बहुरि इस संघात-ज्ञान के ऊपर एक-एक अक्षर का अनुक्रम लिये बढ़ते-बढ़ते | पद होंय। अनेक पदन का समूह संघात, याही अनुक्रम करि एक संघात, दीय संघात, तीन, च्यारि आदि संघात, हजार संघात होय। तहां अन्त का संघात विर्षे एक अक्षर घाटि पर्यन्त, संघात समास के भेद हैं। ऐसे संघात समास जानना।८। अब इस उत्कृष्ट संघात समास विर्षे एक अक्षर ज्ञान और बढ़ाइय तब प्रतिपत्तिक
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