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इनका विशेष—जहां प्रमादवशाय अपने मुनि-पदकं दोष लाग्या जानि उर विष आलोचना कर तथा गुरु के पास जाय प्रकाशे पापते भय स्वाय जैसे आपको दोष लागा होय तैसे ही मन-वचन-काय की सरलता सहित जिस
जिस विधित दोष लागा होय तिस विधि से आप गुरुन के पास कहै । तब सहज ही लाग्या पाप नाश होय । इनके टि परिखामन की सरलता तें निर्दोष संयम होय, दोष नाशै सो आलोचना प्रायश्चित्त है। केतक पाप ऐसे हैं जिनका
दण्ड पालोचना ही है। आलोचना हो ते दोष मिटै। जैसे-लौकिक मैं काह का बिगाड़ किसी से भया होय । तौ, जाय धनी तें कहै जो मेरे प्रमाद तैं भलिकर आपका विगाड मोत भया। अब आपकी इच्छा सो करौं। मोत भूलि भई आप बड़े हो नीकी जानौ सो करौ। रोसे कहे तो धनी याक सरल जानि यात द्वेष नाहीं करै दिलासा दे सोख देय । दोष दूर होय तैसे बालोचना शुद्रभाव नै रिका दोष जा हैं!जहां अपने चरित्र को दोष लाग्या जानि आप मन में बहुत पछतावै। अपनी निन्दा-गर्दा कर तो दोष दूर होय। जैसे—लौकिक मैं काहूर्त पंचन को चूक मई होय तो वह जाय पंचन पै सरल-दीन होय कहै। जो मोर्चे चूक भई आगे से मैं ऐसी कबहूं । नहीं करूँ। अब पंचन की आज्ञा होय सो मोकौ कवल है। रोसे कहते पंच याकं सरल जानि दोष माफ करें।
तेसे ही केतक दोष ऐसे हैं जो निन्दा-गर्दा किये जांय हैं। सो प्रतिक्रमण आलोचना है ।२। जहां अपने चरित्रकों है कोई दोष लागा जानैं तो गुरु के पास भी कहै अरु बारम्बार आलोचना अपनी निन्दा-गर्दा भी करें तो दोष मिट्ट। केतक दोष ऐसे हैं जो लौकिक मैं काह का बिनाड रूप काहतें भल होय गयो होय तौ धनी पे जाय कहै जो मैं आपके पास आया हो आपका कार्य मोते का बिगड्या है मैं महामूर्ख मेरे कर्तव्य का निमित्त देखो। आप बड़े हो। जैसे-भला होय सो करो। मैं तो मल्या हौं। ऐसे कहै तौ धनी याक निश्शल्य जानि-भला मनुष्य जानि दोष क्षमा करें। तैसे हो केक दोष रोसे हैं। सो तिनके मेटवे को गुरु पास भी अपना दोष प्रकाशै अरु , अपनी निन्दा-गर्दा भी करें। याका नाम तदुमय प्रायश्चित है ।३। जहाँ आप कोई वस्तुकरि दोष लाग्या होय पीछे ताकी यादि भरा वाके दुर करवे को जा वस्तु ते दोष लागा था ता वस्तु ही का त्याग करें, तब दोष दूर होय । जैसे—लौकिक मैं कोई भलिक किसी मार्ग राजगृह मैं जाय पड्या तहां पकड्या। कही चोर है, मारो। । तब यानें कही मुलिक इस राह आया हौं, चोर नाहीं। अब कचहुँ इस राह नहीं आऊँगा, मोहि तजौ। तब राजा