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विनाशे सो तो व्यय कहिय और नवीन वस्त को पर्याय का उपजना सो उत्पाद है और वस्तु का सदेव शाश्वत रहना सो ध्रुव है। जैसे-कर का कनक का चड़ा तुड़ाय कुण्डल करवाना । सो इसी ही में तीन भेद सधैं सो बताइए हैं। तहाँ द्रव्य भाव तौ सवर्ण सो शाश्वत सो ध्र व कहिये । चूड़ा की पर्याय टूटो सो ताईं व्यय कहिए और कुण्डल बन्या सो ताकी पर्याय नतन उत्पन्न भई ताक उत्पाद कहिए। ऐसे श तीन भेद जानना। तैसे ही आत्मा तौ द्रव्य और मनुष्य पर्याय छोडि देव भया। सो मनुष्य पर्याय का तौ व्यय भया और देव पर्याय का उत्पाद भया। जीवत्व माव दोऊ मैं शाश्वत है, सो ध्रव है। ऐसे नय भेद तें व्यय ध्रुव उत्पाद अनेक पदार्थन मैं साधना। ऐसे अनेक नय का स्वरूप श्रुत-ज्ञान ते जानिए है। तातै श्रुत-ज्ञान उपादेय है और श्रुत-ज्ञान तें और भी ज्ञाता-ज्ञान व ज्ञेय का स्वरूप जानिये हैं । तातै उपादेय है। तहां ज्ञाता तो आत्मा है । ज्ञाता का गुण झान है और ज्ञान के जानपने मैं जाले सो ज्ञेय है। जान सर्व क्षेत्र का जाननहारा है। ऐसा ज्ञाता-ज्ञान व ज्ञेय का स्वरूप श्रुतज्ञान तें जानिए है। तातें उपादेय है और भी श्रुत-ज्ञान के स्वरूप में ध्याता-ध्येय व ध्यान का स्वरूप कहिए है। तहां ध्याता तो आत्मा है और जा वस्तु कंध्यावै सो ध्येय है और ध्यावते ध्याता के भाव का विकल्प सो ध्यान है। जैसे—धर्मो जात्मा तौ ध्याता है। पश्चपरमेष्ठी ध्येय है ताकों ए ध्याता ध्यावे है और पञ्चपरमेष्ठी के गुणन का समरण सो ध्यान है तथा और दृष्टान्त करि कहिए है। जहां कोई पापी आत्मा तौ ध्याता है और पर-स्त्री भलेरूप सहित देखि ताके मिलाप की चाह ध्येय है और उस स्त्री के रूपादिक गुण: ताका विचार सो आतथ्यान है। ऐसे अनेक जगह ध्याता-ध्येय-ध्यान का स्वरूप सधै है। सो ऐसा भाव श्रुतज्ञान से जानिए है । तात उपादेय है और भी कर्ता कर्म क्रिया का स्वरूप श्रुत-ज्ञानतें कहिए है । कर्ता तौ आत्मा है और जो वस्तु याने बनाय तैयार करो, सो कम है। अरु उस वस्तु के करते, भई जो मन-वचन-काय की हल-चल, सो क्रिया है। जैसे—कोई धर्मात्मा जीव अष्ट द्रव्य मिलाय भगवान का पूजन करें है, सो तो कर्ता है और ताके फलत देवगति, देवायु, सुभग, आदेय, सौभाग्य, सातावेदनीय आदि अनेक बन्ध किये जो शुभ-कर्म, सो इसका कम है और पूजा विर्षे भले भाव का राखना, विनय ते काय का राखना, विनयतें वचन का बोलना, ।। विधि सहित हाथ जोरे हर्ष तें खड़ा रहना इत्यादिक भक्ति-भाव रूप प्रवृत्ति सो क्रिया है तथा और तरह कहिए
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