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जिनमें कु-देव कु-गुरुन के पोषक अनेक द्रव्य चढ़ाने का कथन तथा र देव ऐसा भक्ष लेय है, तब तृप्त । होय हे इत्यादिक कथन जिन शास्त्रन मैं होय सो कु-श्रुत है तथा कु-गुरु पोषनेक ऐसा भोजन ऐसे वस्त्र, ।। धन, मन्दिर, देव, गुरु की सेवा कीजै तथा दासी-दास-स्त्री गुरुन की सेवाकों दीजे, तौ अप्सरान का भोगी होय ऐसा फल पावै तथा गज, घोटक, रथ, पालकी गुरुनकू दीजिए तो देव-विमान का फल पावे इत्यादिक कथन जिन शास्त्रन में होय, सो कु-श्रुत है। इन कु-श्रत शास्त्रन का जाकै ज्ञान होय, सो कु-श्रुत-ज्ञान है । सो सुदृष्टिन करि हेय है। इति कु-श्रुत-ज्ञान । आगे विभंग ज्ञान का कथन करिये है। तहां आत्म हितकं कारण सम्यग्दर्शन सो ऐसे सम्यक्तव बिना मिथ्या भाव सहित इस भव-पर-भव की वार्ता जानना तथा दूरवर्ती पदार्थन को जाने, सो विभंग-ज्ञान है तथा याही का नाम कु-अवधि भी है। ऐसे कहे जो सामान्य अर्थ सहित कु-मति, क-श्रुत और कु-अवधि-ए तीन कु-ज्ञान सो सम्यग्दृष्टिन ते हेय हैं। ऐसे तीन कु-ज्ञान कहे। आगे पांच सुज्ञान कहिए हैं। प्रथम नाम-मति-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान, मनःपर्यय-ज्ञान और केवल-ज्ञान । तहाँ मति-ज्ञान कहिरा है-सो मति-ज्ञान के तीन सौ छत्तीस भेद हैं सो सुनो । प्रथम भेद चारअवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। इनका अर्थ-जहां पदार्थ का दुरतें सामान्यावलोकन होय जैसेकाहू नै दूर से एक स्तम्भ देखा, परन्तु भेदाभेद नाहीं किया सामान्य-सा भाव जो कछू है देखा। ऐसे भाव का जानना सो अवग्रह कहिए और उसही देखे स्तम्भ मैं भेदाभेद करना 1 जो यह स्तम्भ है या मनुष्य है ? रोसे विकल्प का नाम ईहा मेद है। पीछे वाही स्तम्भकाँ जान्धा। जो मनुष्य तौ नाहों स्तम्भ है। ऐसे विचार का नाम अवाय कहिर और आगे बहुत दिन पहले स्तम्भ देखे थे। तिनका सुमरण किया। जो आगे स्तम्भ देख्या तैसा ही यह है, सो स्तम्भ है। निश्चयतें ऐसे दृढ़ भाव विचारना, सो धारणा है। ऐसे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा—इन च्यारि भेदन करि पदार्थ जानिय, सो मति-ज्ञान भेद है। अरु रही च्यारि भेद पंचेन्द्रिय और मन इन षट ते परस्पर लगाय गुणिए तौ चौबीस भेद होय हैं। जैसे-स्पर्श इन्द्रिय से कोई वस्तु-पदार्थ स्पर्या । तब सामान्य-भाव जान्या जो कछु है । विशेष भेद नहीं किया, सो स्पर्श इन्द्रिय ते अवग्रह भधा। फेरि विचारी जो रा पदार्थ पांव ते स्पर्धा सो कहा है ? कठोर-कठोर है गोल है, सो के तो कोई रतन
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