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है या कंकड़ है। इस विचार का नाम स्पर्श इन्द्रिय का ईहा भेद है। फेरि याही को विचारिये कि जो यह गोल है साफ हैं सो रतन है। इस विचार का नाम स्पर्शन इन्द्रिय का अवाय भेद है और तहाँ आगे कबहं पांव नीचे रतन आया था ताकी यादि करि जानी जो आगे पांव नीचे रतन आया था तैसा हो र भी है सो रतन हो है। ऐसा निश्चय करना सो स्पर्शन इन्द्रिय की धारणा है। ऐसे कहे स्पर्शन इन्द्रिय ते च्यारि भेद। सो ऐसे ही रसना, घ्रारा, चक्षु, श्रोत्र और मन-इन छहों त लगाय चौबीस भेद हैं और इन चौबीस मैं स्पर्शन, रसन, घ्रास । और गोत्र-राज्यानि भेट मिला सहाईस होय । इन अठाईस भेदनकों बहु बहुविध आदि बारह भेदनत गुणिय तौ तीन सौ छत्तीस भेद मति-ज्ञान के होंय । इन मति-ज्ञान के भेदन की पल्टन का एक विधान और तरह है । सो बताएँ हैं। अवग्रहादि च्यारि भेदन कू पंचेन्द्रिय और मनतें गुणे चौबीस भेद होय। इन चौबीसकों बहु आदि बारह भेदन तें गुणें दोय सौ अट्ठासी होय है। सो ए तो जावग्रह के हैं और स्पर्शन, रसन, घ्राण, श्रोत्र-इन च्यारि इन्द्रिय ते बहु आदि बारह भेदन कौं गुणें अड़तालीस भेद भए, सो र व्यअनावग्रह के हैं। दोऊ मिल तीन सौ छत्तीस भेद रूप मति-ज्ञान होय हैं। इहां सामान्य भाव कह्या । विशेष श्रीगोम्मटसारजी तें जानना। इति मति-ज्ञान भेद। आगे श्रुत-ज्ञान का सामान्य भेद कहिये है श्रुत-ज्ञान के अनेक भेद हैं। तहां मूल भेद दोय अङ्ग द्वादश अरु प्रकीर्णक भेद चौदह । तहां द्वादशांग के भेद दोय । ग्यारह अङ्ग अरु बारहवें अङ्ग के पञ्च भेद तहां चौदह पूर्व का कथन है। तिनही अङ्ग-पूर्वन मैं गर्मित योग च्यारि प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग-इन योगन मैं कथन जहां तीर्थकर, चक्री, प्रतिचक्री, इन्द्र, देव इत्यादि महान पुरुषन की कथा जामैं होय सो प्रथमानुयोग है और तीन लोक की रचना का जामैं कथन होय सो करणानुयोग है और मुनि श्रावकन के आचार का जामैं कधन सो चरणानुयोग है और षट द्रव्य, नव पदार्थ, सप्त तत्व, पश्चास्तिकाय का कथन जहां होय सो द्रव्यानुयोग है। तहां षट द्रव्य के गुण पर्याय का कथन सो तिन द्रव्यन करि संसार रचना व्यारि गति बनी है ऐसा कथन और द्रव्य में षट गुण हानि वृद्धिरूप परिणमन सो तथा द्रव्य का अपने-अपने व्यय प्रौव्य उत्पाद सहित तीन भेद रूप प्रवर्तना कथन सो स सर्व श्रुत-ज्ञान के भेद हैं। तहां उत्पाद व्यय प्रौव्य का सामान्य कथन कहिर है-जो वस्तु