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तस्व, नव पदार्थ आदि की चर्चा परस्पर करना सो उपादेय है। याका नाम द्रव्यानुयोग चर्चा है तथा जीव कम। से कैसे बन्ध्या है ? कैसे छूटै ? इत्यादिक चर्चा उपादेय है तथा अनेक तीर्थों को चर्चा, दान-पूजा, शील, संयम, तप, व्रत, दया-भाव, जीवन की रक्षा इत्यादिक केवलो भाषित चर्चा, सो उत्तम चर्चा है । तातैं पाप का नाश और || | पुण्य-कर्म का संचय होय है। तातै उपादेय है। इति शुभ चर्चा । आगे कु-चर्चा-हैय का स्वरूप कहिए है । जहाँ परस्पर चर्चा त पाप का बन्ध होय, आगे का किया पुण्य सो क्षीण होय, ऐसी चर्चा होय हेय है। भावार्थकु-देव, कु-गुरु और कु-धर्म इनकी पूजा-भक्ति की चर्चा। इन कुदेवादिक के अतिशय-चमत्कार की चर्चा प्रशसा रूप बात, सो हेय है। अपने-पराये जान के युद्ध की बात, हारे-जोते की, निन्दा-प्रशंसा की चर्चा तथा खोर की चतुराई की चर्चा, मन्त्र, जन्त्र, तन्त्र, टोणा, चौमणा, ज्योतिष, वैद्यकादि के चमत्कार को चर्चा, मल्लयुद्ध हस्ति-घोटकादि की लड़ाई की चर्चा, रा कु-चर्चा हेय हैं तथा स्त्रोन के रूपलावण्य की वार्ता करनी तथा स्त्रीन के अनेक शुभाशुभ चरित्र, कला, गीत, गान, गालि, नृत्य, भोग, चेष्टादि की चर्चा, सो हेय है तथा अनेक प्रकार भोजन, व्यअन, रस-पान, भोगोपभोग मैं अच्छे-बुरे की चर्चा, सो हेय है और कंपीड़ा उपजाबने की, पराया धन नाश कराने की, पराए मान खण्डन को परस्पर चर्चा, सो हेय है। अनेक देशन मैं, किसी को भला । किसी को बुरा कहने की चर्चा । परस्पर युद्ध होय, द्वेष बधै ताकी चर्चा तथा स्वचक्र-परचक्रादि सप्न ईति-मोति की चर्चा, सो हेय है और तन रोगादिक उपजने की, क्षय होने की इन आदि अनेक विकथा रूप चर्चा, अशुभ बन्ध को करनहारी, सो हेय हैं। | इति श्रीसुदृष्टितरंगिणी नाम ग्रन्थके मध्य में चर्चा विर्षे ज्ञेय हेय-उपादेय का वर्णन करनेवाला सोलहवां पर्व सम्पूर्ण हुआ ॥१६॥'
आगे अनुमोदना अधिकार में ज्ञेय-हेय-उपादेय कहिये है तहां शुभाशुभ कार्यन की अनुमोदना के समय भाव का जानना, सो तो ज्ञेय है। ताही ज्ञेय के दोय भेद हैं। एक शुभ अनुमोदना है, एक अशुभ अनुमोदना है। भावार्थ-जहां लौकिक कार्यन में, पुत्र-पुत्री के शादी-ब्याह में, मन्दिर-महल के आरम्भ में, युद्ध विर्षे, अपने
मन की अनुमोदना हेय है तथा भले रूप में, भले भोजन में, कूप से पानी के कादिवे में, वापी-तालाब के खदावे २३३ || मैं इत्यादिक भमि खोदने के आरम्भ मैं अनुमोदना, पाप-बन्ध करे है. तातें हेय है तथा काहू नै काह पे शस्त्र