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भाचार्य के पास फिराव तब वह भी दण्ड नहीं देय फिर अपने ही गुरु आवै। ऐसे सात संघमैं सात आचार्शन के पास खिदावै। कोई भी यानी शिष्यकों दण्ड नहीं देंय तब यो अपने गुरु पास आय मान तजि सरल होय कह मौका प्रायश्चित दहा रायगुरुपाकी विनय सहित देखि निःशल्य प्रायश्चित्त याचता देखि प्रायश्चित्त देय शुद्ध करें। इत्यादिक र अनुपस्थान के भेद जानना। आगे पारंचिक प्रायश्चित्त का स्वरूप कहिर है। जानै मुनि, अणिका, श्रावक, श्राविका–इन च्यारि संघ कं उपद्रव किया होय तथा कोई पृथ्वी के राजात द्वेष-भाव किया होय तथा जात काहू स्त्री तें कुशील सेवनादि अन्याय मार्ग का दोष लागा होय। तिस मुनि कं बड़े दण्ड होय। जैसे-ऊपर उत्कृष्ट दण्ड कहै सो होय । पीछे धर्म रहित क्षेत्रन मैं राख और सर्व लोकनको ऐसा जनार्दै जो ए मुनि महापाय के करनहारे हैं। बड़े पापी हैं तात आचार्यनै संघते इनकों काढि दिये हैं। संघ बाहिर किया है। ऐसा दीर्घ दण्ड अपमान का कारण लोकनिन्द्य ता दण्ड कू पायकै यह धर्मात्मा शिष्य हर्ष सहित परिणति राखि गुरु की आज्ञा प्रमाण प्रवर्ते है । कैसा है शिष्य महावैराग्य करि सर्व अङ्ग भरया है ? बड़ी शक्ति का धारी ज्ञान का भण्डार गुरु के दिए प्रायश्चित्त कं पाय बढ्या है बहु हर्ष जाकै, सो रोसा आचार्य का दिया दण्ड पाय रोसा विचारे, जो आज का दिन धन्य है। जो आचार्या हमकौं प्रायश्चित्त देय, शुद्ध कर हैं। हमारे पाप दूर करवै का इलाज बताया है। सो अब हम गुरु के प्रसाद तैं पापक मैटि. मोक्ष चलेंगे। रा गुरु धन्य हैं। ऐसा हर्ष सहित प्रायश्चित्त लेय। ऐसे शिष्यन कं रोसे दण्ड होय हैं। ऐसे पारंचिक प्रायश्चित्त जानना। जैसेलौकिक मैं राजा दीर्घ दण्डवारे को लोक के जनावैको, सर्व नगर मैं फेरैं। सर्वकं रोसा कहैं जो यह राजा का गुनहगार है। याने ऐसा निन्द्य कार्य किया था, सो ऐसा दण्ड पाया है। तैसे हो केतक पाप ऐसे हैं जो रौसा दोध दण्ड भए हो शुद्ध होय है, याका नाम परिहार प्रायश्चित्त है। कोई शिष्य ने जिन-आज्ञा लोप, मिथ्यामार्ग, सेया होय, तो गुरु ता शिष्य की सर्व दीक्षा घेद नवीन दीक्षा देंय, तब शुद्ध होय । जैसे—लौकिक मैं काहू मैं अपना कुल-कर्म तजि, कोई नीच-कर्म किया होय । तौ राज-पंच दाका घर लटि लेंय। सो केतक दोष रोसे हैं, सो सर्व दीक्षा घेद, नवीन दीक्षा देय, छेदोपस्थापन करावे तब शुद्ध होय। याका नाम उपस्थापन प्रायश्चित्त है। ऐसे प्रायश्चित्त के दश भेद कहे। अपना लाग्या दोष कं याद करि प्रायश्चित्त लेय शुद्ध होय, सो प्रायश्चित्त-तप