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सुन्दर व्यजन रसोई करि, राजाको जिमा, राजी करै। किन्तु आव वाके किए भोजन का स्वाद नहीं जाने मी तथा जैसे- अनेक व्यञ्जन भोजन महामिष्ट स्वाद रूप हैं जिनमें सर्व जगह हँडिया में धातु का चमत्रा फिरै, परन्तु सुव्यवन भोजन के स्वाद कूं नहीं पावें । तैसे ही अनेक तरवन का रहस्य मुखतें बतावै, मोक्ष होने के उपाय बताय औरनकं तत्त्व रस का स्वाद कराय, मोक्ष-मार्ग बताय, सुखी करै । परन्तु आप तत्त्वरस स्वाद नहीं पावै, सो fr कु- पात्र है । तातैं कु पात्र तजवे योग्य है है । इति कु-पात्र भेद तीन आगे अ-पात्र भेद तीन कहे हैं। जे जिनआज्ञा रहित लिङ्ग के धारी, परिग्रह सहित, आपकूं यतिपद-गुरु संज्ञा माने हैं। नाना प्रकार तप संयम ध्यान करै हैं। राग-द्वेष पीड़ित उसके धारी; क्रोध, मान, माया, लोभ करि मण्डित मन्त्र तन्त्र, जन्त्र, औषधि, रसायन, धातुमारसा, ज्योतिष, वैद्यक, नाड़ी इत्यादिक चेष्टा करि आजीविका करनेहारे होंय, अनेक मेष-स्वांग के धारी, सो उत्कृष्ट अपात्र हैं। सो औरन कू तौ रा कु मार्ग उपदेश हैं, अरु आप शुभ- मार्ग रहित हैं। जैसे—कोई ठग, राजा का मेष धरि, औरन पै अमल चलाव, अरु कहै जो मैं राजा हौं । जो मेरी सेवा करेगा, सो अनेक ऋद्धि पाय, सुखी होयगा। तब ऐसा जानि, भोरे गरीब जीव उगकौं राजा जानि, ताकी सेवा करें हैं। सो रा भोले जीव हो ठगावै है । क्यों, जो ए ऊपरि तैं राजा भया है । अरु अन्तरङ्ग मैं भांड है। सो उल्टा कछू भोख मांगेगा, देवक समर्थ नाहीं । यामैं राजा का एक भी चिह्न नाहीं । आप हो भूखा है। औरन कू सुखी करवेंकू' असमर्थ है। तैसे हो रा अ-पात्र, आप धर्म-वासना रहित है तथा और कूं धर्म-फल बतायवे कूं असमर्थ है। सोरी उत्कृष्ट अ-पात्र हैं। तातें तजवे योग्य हेय हैं । जे गृहस्थ, कुटुम्बादि सहित जिन आज्ञा रहित, हिंसामयी तप-संयम के धारक कन्दमूल के भड़क कू आचार्य, सत्य धर्म दयामयी तातैं रहित, कुधर्महिंसा मार्गी, आपकू व्रती, तपी, जपी, संयमी, धर्मात्मा माननेहारे, सो मध्यम अ-पात्र हैं और जिन आज्ञा रहित गृहस्थाचार के धारी, नाम-पूजा- दानादि - अङ्गी आपको जाननहारे, अक्षय के खानेहारे, हिंसा-धर्म के लोमो, दया रहित गृहस्थी, आपकू धर्मो जानें, सो जघन्य अपात्र हैं। ए अ-पात्र के तीन भेद हैं। इति अ-पात्र । आगे सु- पात्र नव भेद हैं हैं । तहां सुपात्र के प्रथम तीन भेद हैं। उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य तहां उत्कृष्ट पात्र के तीन भेद हैं। उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य । तहां तीर्थङ्कर राज अवस्था तजि दिगम्बर भये, जबतें केवलज्ञान नहीं
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