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डूबनहारे ऐसा निमित्त कबहूँ कुकर्म त होता है। कमा लानेवाले बहुत हैं। तैसे कुपात्रन का निमित्त अल्प है। सुपात्र के निमित्त को दीर्घता है। ऐसे राह लुटने की नाई कदाचित कपात्र-दान का निमित्त मिले तो कभोग भूमि का फल जानना। तहां कुभोग भूमि में आकार शरीर का नीचे तो मनुष्य का सा होय है. और मुख तिनके पशुजन के आकार हैं। सो कोई का मुख सिंह कैसा है। किसी का हस्ती-सा मुख है। कोई का सूअर कैसा मुख है। कोई के मुख घोड़े कैसे हैं । केई का मुख मोर-सा है । केहन के कान लम्बे हैं । केइन के ऊँट समान मुख हैं । इत्यादिक आकार जानना । धरती रंधन जो बिल तिनमैं रहैं हैं। कई वृत्तन के स्थल...नसान मैं हैं और ताशी ति की मिट गहत समान, तिसका भोजन है। एक पल्य की आयु अरु एक कोस का शरीर होय है। ऐसा कुपात्र-दान का फल है। सुपात्र-दान का फल स्वर्ग-मोक्ष है तथा तीन पल्य, दोय पल्य, एक पल्य, आयु के धारी, भोग भूमियाँ होय हैं। ऐसे कहे अपात्र-कुपात्र तो विवेकीन कों हेय। कहे नव प्रकार सुपात्र भेद, सो उपादेय हैं यथायोग्य पुजिवे प्रशंसवे योग्य हैं। इति पात्र मैं झय-हेय-उपादेय कथन । आगे पूजा विर्षे ज्ञेय-हेय-उपादेय कहिए है। तहाँ सुपूजा-पूजा का समुघय जानना, सो तो ज्ञेय है। ताके दौय भेद हैं। एक सुज्ञेय है, एक कुज्ञेय है। तहां वीतराग होय, जाके अपने सेवकन तें राग नाहा, कि जो यह मेरा भक्तिमन्त है, निश दिन-मोकी आराधै है, सो यातें प्रसन्न होय, याकं सखी करौं । ऐसे विचार का नाम तो राग-भाव है। जो आपको नहीं पूज, अपना विनय नहीं करै निन्दा करें आपकी प्रशंसा नहीं करै तौ ता द्वेष-भाव करै ताके मारने की ताकौं रोग करे, इत्यादिक दुख देने का उपाय करे सो द्वेषभाव जानना। ऐसे राग-द्वेष जाकै नाही होय सो वीतराग समता सुख-समुद्र का वासी परम पवित्र देव, ताकी सेवा पूजा-वन्दना है, सो सुपूजा है। लोक-अलोक को जाननेहारा, इस तीन लोक में जेते जीव-अजीव पदार्थ समय-समय जैसे-जैसे परिणमैं हैं, आगे अनन्तकाल में से परिणामेंगे अतीतकाल में ऐसे परिरामे आये ऐसे तीन-काल तीन-लोक के विर्षे अनन्ते जीव जेसे भाव विकल्प रूप परिणमैं हैं। सबके घट-घट की जाने। ऐसा अन्तर्यामी सर्वज्ञ भगवान् अनन्त गुण भण्डार ताकी पूजा है, सो सपजा है। ऐसे वीतराग सर्वज्ञ कौ बारम्बार नमस्कार होऊ। इति सुदेव पूजा। आगे सुधर्म-पूजा कहिए है। तहां सर्व-वीतराग का वचन सोई शुभ
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