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हॉय, सो भाव शुद्ध जानना । क्रोधी नहीं होय, जो भोजन करते लड़ता जाय, कोपवचन कहता जाय । इत्यादिक । शुद्ध होय, सो भाव शुद्ध है। ऐसे द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव करि खान-पान शुद्ध होय, सो शुद्ध है। धर्मात्मा जीवन करि उपादेय है। इति शुद्ध खान-पान । आगे अशुद्ध खान-पान बताइश है। जहां भोजन करनेहारा क्रोश, || १९५ भोजन करता ही परतें शुद्ध करता जाय वे मर्याद बोलता जाय सो खान-पान अशुद्ध है विकल परिणामी होय, भोजन का भूखा लोलुपी होय सो भोजन करता कडू कालू खावता जाय सो भोजन अशुद्ध है। इत्यादिक भाव ! अशुद्ध हैं। रात्रि का पीसा-पकाया-आरम्भा होय, बहत काल का मर्यादा रहित होय गया होय तथा रात्रि का किया बासी होय । इत्यादिक काल-अशुद्ध है।२। अन्धकार क्षेत्र में किया, जहाँ छोटे-बड़े जीव पतनादिक की ठीक ना होय, जहाँ बहत जीवन का गमन होय, चौपट स्थान होय, जहाँ बहुत जीवन की उत्यत्ति होय, मच्छर-चौंटी-मक्खो बहुत होय इत्यादि क्षेत्र अशुद्ध है।३। करनेहारे का तन, रोग पीड़ित होय । खांसी, श्वास, खुजरी, जुखामादि रोग सहित होय । तन मैं फोड़ा दुखना बहुत होय, निद्रा जाके तन मैं बहुत होय, इत्यादिक दोष सहित करनेवारा होय, सो द्रव्य अशुद्ध है तथा वीधा अन्न न होय, जल अनगाला होय, घृत चर्म का होय, बाटा रात्रि का पीसा होय, इत्यादिक द्रव्य अशुद्ध है। ४। सो रोसे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करि अशुद्ध होय सो खान-पान अशुद्ध है धर्मात्मा जीवन करि हेय है और राह चलते खाते-पीते जाना। चौड़े बैंठि स्वावना । पांति विरोधी के संग बैठि स्वावना। कौतुक सहित खावना । बाजार में बिकता, सीधा तैयार भोजन मोल लेय स्वावना। इत्यादिक खान-पान अशुद्ध हेय है। ऐसे जानि विवेकी हैं तिन कं शुम भोजन ग्रहण और अशुभ भोजन तजन योग्य है। इति खान-पान मैं शेय-हेय-उपादेय कही। आगे वचन मैं हेय-झेय-उपादेय कहिए है। तहां शुभाशुम समुच्चय वचन का जानना सो ज्ञेय है। ता ज्ञेय के हो दोय भेद हैं। एक उपादेय है और एक तजवे योग्य है । सो जहां जो अन्य जीव कू सुखदाई होय दया सहित होय क्रोध, मान, कुटि- | लता, लोभ-इन च्यारि कषाय रहित होय धर्म-बुद्धि सहित होय। दान, पूजा, शील, संयम, तप, व्रतादिगि महान पुरुषन की चर्या सहित होय तथा धर्म उत्सव वचन शान्ति भाव सहित हित वचन सौम्यता सहित प्रिय वचन इत्यादिक जिन-आना सहित सत्य हित-मित वचन है सो उपादेय है। इति उपादेय वचन । श्रागे