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आगे खान-पान विषै ज्ञेय हेय उपादेय कहिए है। तहां खान-पान क्रिया है, सो क्षेत्र काल भाव करि विचार देखि करना योग्य है। सोई द्रव्य विषै तौ शुभाशुभ जीवन कूं विचारना। क्षेत्र में शुभाशुभ क्षेत्र का विचारना और काल मैं शुभाशुभ काल का विचारना। भावन मैं शुभाशुभ भाव विचारना ऐसे विधि विचारिए, जो यह खान-पान किस जीव में किया है ? सो करनेहारा आचरण धर्मो है अथवा मूर्ख है, पापाचारी मलीन है ? सो तौ द्रव्य विचारि है। यह खान-पान किस क्षेत्र का किया है ? सो क्षेत्र योग्य है वा अयोग्य है ? ऐसे क्षेत्र विचारिए। ए खान-पान किया, सो कौन काल में किया है ? सो काल योग्य है वा अयोग्य है ? ए खान-पान किया, सो कैसे भावन तें किया ? सी वाके भाव शुभ है अथवा अशुभ हैं ? ऐसे मावन का विचार करै। ऐसे विचार कै. विवेकी खान-पान मैं ज्ञेय हेय उपादेय करें। सो कैसे करै सो कहिए है। तहां क्षेत्र ऐसा होय जो हाड़ नहीं दीखे, मांस पिण्ड नहीं दीखें, जहां रुधिर नहीं दीखै, जहां मदिरा नहीं दीखे, तजो वस्तु अपने भोजन मैं नहीं आये, श्रपने भोजन मैं जीव पतन नहीं होय, जहां पंचेन्द्रिय का मल नहीं दीखें - ए सात कारण रहित शुद्ध क्षेत्र होय । जहाँ अन्धकार नहीं होय, बहु मनुष्य पशून का गमन नहीं होय, एकान्त होय, सो भोजन-पान शुद्ध है और भलो क्रियावान भोजन करनेहारा होय। भोजन करनेहारे का शरीर शुद्ध होय, करनहारा दयावान होय, करनेहारा पाप तैं डरता होय, खासी श्वास रोग नहीं होय, करनेहारे के तन में जुकाम नहीं होय, कफ नहीं होय, वमन नहीं होय, अतीसार नहीं होय, तन में फोड़ा - दुखना नहीं होय, राजरोग कुष्टादि नहीं होय, खुजली नहीं होय इत्यादिक रोग-दुखन करि रहित, शुद्ध भोजन करनहारा होय, विकलता रहित होय, सो द्रव्य शुद्ध है तथा भोजन मैं आयें ऐसे अन्न, जल, घृत, दुग्धादि तथा तन्दुल, गेहूँ, चना, मूंगादि अन्न बींधे गये, जीव सहित नहीं हों तथा घृत-जल, चर्मादिक का नहीं होय । इत्यादि वे भी द्रव्य शुद्ध जानना । काल शुद्ध जो रात्रि का किया आरम्भ नहीं होय, बड़ी बार जो भोजन की मर्यादा का काल उलघन नहीं भया होय तथा रात्रि साया वासी नहीं होय । इत्यादिक काल शुद्ध होय, सो काल शुद्ध जानना । भाव शुद्धता, जो करनेहारा भोजन का, सो विकल परिणामी नहीं होय भोजन का स्वाद लम्पटी नहीं होय, भोजन की तीव्र क्षुधा सहित परिणामी नहीं होय । योग्य-अयोग्य भोजन मैं समझनेहारा होय । इत्यादिक धर्मवान विवेक सहित जाके भाव
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