________________
ब
उदास आत्म रसराते, शान्त चित्त के धारी, सो ग्लानि जाति के मुनि हैं। ५ । बड़े-बड़े यतीन का संघ, सो गए जाति के मुनि हैं। सो बड़े-बड़े यतीन के तीन भेद हैं। वय करि बड़े तथा गुण-ज्ञानादि करिके बड़े तथा दीक्षा करि बड़े, यतिन का समूह, सोमण जाति के मुनि हैं। ६ । श्रावक, श्राविका, मुनि, अजिंका-इन चारौं प्रकार के संघमै रहँ, सो संघ जाति के मुनीश्वर हैं। ७. जे मुनि शिष्यन की आम्नाय जाने, दीक्षा देने की विधि जानें इत्यादिक मुनि-धर्म की क्रिया मैं प्रवीण होय, सो कुल जाति के मुनीश्वर हैं। जे बहुत काल के दीक्षित होय, सो साधु जाति के मुनीश्वर हैं।६।जे बाह्य परिग्रह का त्याग करि नगन होय, गुरु चरणारविन्दन के पास मुनिपद धरवे कू सन्मुख भया, मुनि होयबै की क्रिया नेग-चार करावता होय, सो मनोज्ञ जाति के मुनि हैं।२०। ऐसे दश जाति के मुनिपद पूज्य हैं। आगे ऐसे गुरु के विचारने योग्य समाचार दश हैं। महामुनि इनका विचार कैसे करें, कहां करें, लोकानिये हैं: मोदाथ हो आजारर र" श अनुसार कहिये हैं। इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार इच्छा व्रत आशीष निधि का अप्रच्छिन्न प्रति प्रछिन्न आन मन्त्र संप्रय अब इनका सामान्य अर्थ कहिये है। पुस्तक, आतापन, योगादि अनेक शुभ क्रिया अपने हित निमित्त सीसी जाय, विनय सहित आचार्य पं याचे, सो इच्छाकार है। बिना उपदेश, आप अपनी इच्छात अपने हितकारी परभव सुखकारी पुण्यकारी वस्तु विचारि करि गुरुन पै याचना करै, सो इच्छाकार समाचार है। 21 जे यति महाधम मूरती उदास ! वृत्ति का धारक च्यारि गति के जन्म-मरण करि खाया है, भय जानैं सो मुनि रौसा विचार जो मैंने अपनी अज्ञान | अवस्था मैं अनेक पाप किये तिनका फल अब समझा सो पाप का फल अनिष्ट जानि महाभयभीत होय या कहैं
जो मेरे एकीएक अगले पाप मिथ्या होह । अब मैं पाप नहीं करूँगा। ऐसे पापतै भय खाय निःशल्य होय सो मिथ्याकार कहिये । २। जहां तत्त्व पदार्थनकी श्रद्धे, सो सत्य जिन-आज्ञा प्रमाण श्रद्धा है तथा जिन अङ्ग-पूर्व शास्त्रत का गुरु मुखत श्रवण करना सो विनय सहित करना तथा आप सभाजनक हित का करनहारा उपदेशक है सो जिन-आज्ञा प्रमाण कहै । अरु कदाचित् अपनी इच्छाकरि (मनमाना) उपदेश करै तौ महान् पापी होय । तातै जीवनकौं दयापूर्वक कहै। जिन-प्राज्ञा सहित सत्य कहै। अपनी बुद्धि बनाय नहीं कहै तथा आप जिन। आशा प्रमास श्रद्धान राखे। औरको धर्म-राह बतावें सो जिन-आज्ञा प्रमाण कहे, सो तथाकार समाचार कहिये।३।।