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भई होय दिन नाहीं गिनै । जो सूर्य के उद्योत ऋतुवन्ती भई होय तौ दिन गिने । ऐसे तीन दिन एकान्त में रहें । भोजन पातल में खाय तथा कड़ाही में खाय । जल पीवकों मिट्टी का बासन राखे तातें जल पीयें। शुद्ध भए मिट्टी के बासरा डार देय तथा फोरि डारें, चौथे दिन शुद्ध होय स्नान कर अपने पति का मुख देखें तथा पाँचवें दिन सु पति का मुख देखे पोछे सास, ननद का मुख देखे ऐसी उत्तम स्त्रीकें जास रहे। पति संगमतें सन्तान होय । सो पवित्र बुद्धि का धारक पिता समान रूप-गुण-लक्षण-काय का धारी होय । शुभाचारी दयावन्त, धर्मवन्त, शीलवन्त इत्यादिक गुण सहित शुभ पुत्र होय । अब कु-स्त्री का स्वरूप कहिये है। जो कु-स्त्री तथा खोटी स्त्री है सो ऋतुवन्ती भरा पीछे पहले दिन तथा दूसरे दिन विषै ही कुशील सेवन करें है । जे महाअभागी मोरे कामलम्पटी दुर्बुद्धि हैं तिनके वीर्य तैं जो पुत्र-पुत्री होय, सो कु-शीलवान होय द्यूतादिक सप्त-व्यसनी होय, मांस भक्षी होय, सुरापायी होय, वेश्यागमनी होय, जीव घाती निर्दयी होय, चोर-कला मैं प्रवीण होय, पर-स्त्री का इच्छुक होय. मका भोगी अभक्ष्य मक्षणहारा होय, शुभ-अशुभ विचार रहित महामूर्ख अज्ञानी अन्ध समान होय। खाद्य-अखाद्य के विचार में वंश समान अनाचारी होय, महाक्रांधी होय, मानी होय, महादगाबाज होय, लोभी होय, अविनयी होय इत्यादिक अपलक्षणी होय । परभव के सुख का कारण जो धर्म तातैं रहित अधर्मी होय। माता-पितान कौं दुखदाई अविनयी होय । विशेष ज्ञान कला- चतुराई लौकिक-कलातें रहित मूढ़ होय । कुरूप होय, दीन होय, दरिद्री होय, बाल अवस्था ही तैं। कौप का धारी होय । महामानी होय, क्रूर दृष्टि होय । अपना मान भङ्ग भमरन विचार देशान्तर निकस जाना विचारै महामूढ़ चित्त का धारी अपने चित्त का जभिप्राय काहू कौ नहीं जनावै । महालोभी तन देय धन नहीं देय। आप भूख स अपयशादि तैं नाहीं डरे जैसे-तैसे धन जोरे ऐसा लोभी होय । इत्यादिक अनेक औगुणी होय। ऐसे पुत्र तैं कुल-कलङ्क चढ़ें है । तातैं तिन उत्तम कुल के स्त्रीपुरुषनकूं ऋतु समय की क्रिया मैं प्रमाद तज शुभ रूप प्रवर्तना योग्य है और जे उत्तम स्त्री हैं सो ऊपर कहि खारा शुभ स्त्रीन के शुभ लक्षण स्त्री-धर्म की मर्यादा, सो ताही प्रमाण प्रमाद रहित पालें हैं। उत्तम धर्मात्मा स्त्री, मन्द हैं भोग अभिलाषा जाकै ऐसी शुभ स्त्री महासती कैं, चौथे दिन स्नान करि पति संग तैं गर्भ रहे तथा पञ्चम दिन तथा षष्टम दिन तथा सप्तम दिन भर्तार तैं संगम तैं गर्भ रहे है। ता गर्भ विषै शुभात्मा पुरय बन्ध करनेहारा
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