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रोसा तन सफल है। ६ । कर्म अपेक्षा घर मण्डन धन की वृद्धि सहित सपूत पुत्र का होना। आज्ञाकारिणी, सुलक्षणी, शीलवान, विनयवान, रूपादिगुण सहित मली स्त्री का होना सो तथा माता-पिता, भाई,पुत्रादि सकल कुटुम्ब विर्षे परस्पर स्नेह, इत्यादिक निमित्तन का मिलना, सो यातै घर भला दोखे। सो कर्म अपेक्षा र घर | आभूषण हैं। धर्म अपेक्षा जा घर वि शुभाचारी दयावान धर्मी जीव होंय तथा जा घर मैं मुनि श्रावकादि धर्मात्म जीवन का सदैव प्रवेश होय । सो घर की शोभाकारक घर आभूषण है। यातं घर सफल है। १०। कर्म अपेक्षा धन मण्डन चित्त की उदारतापने सहित अपने अनेक जीव-कुटुम्बादिक तिन सब मैं बाँट खावना। पंचेन्द्रिय सुख में लगावना रतन कनकादिक के अनेक मनोन मन्दिर बनाय तिनमैं अनेक चित्रामांदि शोभा कराय रहना। अनेक जाति के जननकू यश के निमित्त दान देना और पुत्र, पुत्रो आदिक की शादीन मैं द्रव्य लगावना तथा पुत्रादिक की उत्पत्ति के उत्सवन मैं धन खर्चना तथा भाई, बन्धु, मित्रन मैं धन देना तथा बहिन-भांजीक धन देना इत्यादिक स्थानकन मैं उदारता सहित हित-मित करि धन लगावना सो धन का आभूषण है। या धन शोभायमान होथ है और धर्म की अपेक्षा अपना धन उदारता सहित धर्मानुराग करि नवधा-भक्ति सहित मुनिकं दान देना तहां धन लगावना।२। तथा सूवर्ण चाँदी के अक्षरन सहित स्पष्ट भारी पत्रन वि शास्त्र लिखाना। तिनमें अनेक भारी मोल के मनोज्ञ वस्त्रन के पुठे बन्धन कराध लगावना । २ । तथा जिन-पूजा विर्षे मोतीन के अक्षत, सुवर्ण चाँदी के फूल, रतनन के दीपकादि उत्तम अष्ट द्रव्य मिलाय प्रभु की पूजा में लगावना तथा भारी पूजा-विधान तीन लोक के जिन-मन्दिर को पूजा तथा तेरह द्वीप की पूजा तथा नन्दीश्वर-विधान पूजा तथा अढाई द्वीप का विधान तथा जम्बूद्वीप-विधान, कर्मदहन-विधान, पञ्चपरमेष्ठी-विधान, पञ्चकल्याणकादि अनेक विधान कराय जिन-पूजा मैं धन लगावता । ३। महादोघं उत्तुङ्ग विस्तार सहित, जिन-मन्दिर कराय तिन विर्षे अनेक चाँदी-सुवर्ण का चित्राम तथा शुभ रङ्ग का चित्राम करावना तामैं धन लगावना तथा अनेक परदा चाँदनी.
गलीचा, शतरआदि अनेक बिछावना तथा नौबत, निशान, घण्टा. छत्र, सिंहासन, चमर, ध्वजा इत्यादि करावना १९.तथा पूजा के उपकररा थाल, रकेबी, झारी, प्यालादि अनेक चाँदी-सुवर्ण के करावना इत्यादिक शोभा सहित !
जिन-मन्दिर बनाय तामैं धन लगावना। ४। जिन-बिम्बन की विधि सहित, जिन-बिम्ब करावना। सो ताका