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अन्य गति तैं च करि, ताके गर्म विषै अवतार लेय। सो चौथे दिन का गर्भ रह्या जीव मन्द कषायो, धर्म रुचि सहित, संघम- सम्पदा सहित, सम्यग्दर्शन रतन का धारी होय है और पञ्चम हिन का गर्भ रह्या होय, तहां महाउत्तम जीव प्राय अवतार लेय, सो पुण्याधिकारी अनेक राज भोग का भोक्ता होय. पीछे अणुव्रत तथा महाव्रत काधारी हो। षष्टम दिन का गर्भ रह्या, सो जो दया रस का धारी, देशव्रत धारी शुभ गति जाय तथा महाव्रती होय और सप्तम दिन का गर्भ रह्या जीव निकट संसारीमा पंचेन्द्रिय
सो
भोग
सुख
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भोगि तीर्थङ्कर, चक्री, कामदेवादिक, महान राज-सम्पदा भोगे पोछे संघम पाथ सिद्ध पद पावे ऐसा पुत्र होय । ऐसे शुभ स्त्रीन की शुभ क्रिया कही। इस तरह शुभाशुभ क्रियाचार का सो विवेक्रीन को समि अपने भले योग्य होय, सो करना योग्य है । इति आचार क्रिया मैं ज्ञेय हेय-उपादेय कही। आगे कहैं हैं जो उत्तम श्रवकन के धर्म- जाभूत्रण कर्म - आभूषण क्या सौ कहिए है। सो आभूषण भेद दोय हैं। एक तो धर्मआभूषण, एक कर्म- आभूषण। इन दोय आभूषण सहित होय तेही महासुन्दर हैं। तेई बड़ भागी हैं। ते हो सराहवे योग्य हैं। सो दोय भेद आभूषण का, विशेष कहिए है। जो कर्म अपेक्षा हाथ आभूषण चूरा अंगूठी आदिक जिन तैं कर शो सो कर आभूषण हैं। धर्मात्मा जीवनकें जिन हाथन तैं देव-गुरु-धर्म को पूजा करते, नमस्कार कर कर दौड़ कमलाकार होंय । सो ही हाथन का पावना सुफल है। जिन हाथन तें देव पूजादि शुभ कार्य करना, सो हो कर आभूषण है । । भुजबन्ध बाजूबन्यादि जातें भुज शोमै सो भुजा भूषरा है। सो ये कई सम्बन्धी भुज आभूषण हैं और धर्मात्मा जीव जिन भुजन पर जीवन की रक्षा करें तिनकू देखि कोई दुष्ट जन दीन जीवन नहीं पीड़ित कर सकै। साधुनको रक्षा तिन भुजन तैं दुष्ट जीवन पोड़ा-दण्ड देने की शक्ति दीन जीवन की रक्षा कूं योधा, शरण आयके रक्षक, इत्यादिक पुरुषार्थ तिन करि जाकी भुजा शोभायमान है, सो ही भुज आभूषण हैं। या धर्मात्मा पुरुषन के भुज शोभा पावें । २। कंडी, माला, हार इन आदिक आभूषण जितें उर शोभा पाव है। सो उर आभूषण हैं। ए कर्म सम्बन्धी हैं । जा उर मैं सदैव अरहन्तादि पञ्चपरमेष्ठी के गुणन का सुमरण वैराग्य चिन्तन बारह भावना तथा सोलह कारण भावना का चिन्तन करना, सो धर्मात्मा जीवनकै उर आभूषण हैं । ३ । पांवन के आभूषण जातें पद शोमा पावै, सौ कर्म सम्बन्धी पद आभूषण हैं।
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