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जीव मारचा, सबनै देख्या। सो यह महापापी है। हत्यारा है। तब पञ्च ती याकी जीव-हत्या लागी जानि, न्यातित निषेधै और राजा याकौं पापो जानि, बिना प्रयोजन दीन-पशु का घाती देख, घर लटि ले, ताका हाथ, || १७४ नांक छ । ऐसा प्रत्यक्ष लौकिक मैं जीव घात करना जाके शास्त्र में पुण्य कहा होय और जाके देव-गुरु-मक्त जीव घात मैं मगन होय, जीव घात करते होय। सो धर्म, दया रहित, जीव घातक, तजिवे योग्य है। ये भी धर्म
लौकिक ते निन्ध है। क्यों, जो लौकिक है तौ दया करि जीवन की रक्षाकौं सदावत देय हैं। पशनकों घास मिप्यालेन झुगल दे हैं: ए को वस्त्र देय है। रोगीको भेषज देय है। इत्यादिक जैसे-तैसे जीवन
की रक्षा करे है । जाके धर्म मैं जीव घात मैं पुण्य कहा होय, जोवन की हिंसा कही होय, सो धर्म दया रहित, असत्य है। यह धर्म भी लौकिक करि खण्ड्या जाय है। जे पराथा चेतन-अचेतन परिग्रह, छल-बलि करि हरै, ताकौ चोर कहिए। सो जीव राज, पञ्च करि दण्डवे योग्य है। लोक निन्ध है। सो रोसी चोरी जाके देव-गुरु करते होय। अपने भक्तको छलत फुसलाय वाका धन ठगे, पराई स्त्री, पुत्री शुभ देख, ले जाय, सो चौर। ऐसे कथन जाके धर्म मैं होय । जाके देव-गुरु ने पराया धन, स्त्री, पुत्री हरना कहा होय, सो धर्म असत्य है। यह मी चोर-धर्म लौकिक ते निन्ध है तातें हेय है। पर-स्त्री के सेवन के योग्य ते पञ्च तौ जाति से निकास हैं। इस कुशीली पुरुष का राजा घर लूटे है अङ्ग उपाङ्ग छदें है, मारे है ! सररौपणादि (गधे पर सवारो) अपमानादिक अनेक दुख देय है। ऐसी प्रवार लौकिक विष प्रत्यक्ष देखे हैं। अरु जाके धर्म मैं पर-स्त्री का सेवन, जो परस्त्री जाका भरतार जीवता होय तथा भार रहित विधवा होय तया बिना ब्याही कुमारी होय तथा दासी होय इत्यादिक पर-स्त्री हैं। तिनके सेवन का दोष, जिनके धर्म विर्षे नहीं कहा होय । जाके देव-गुरु पर-स्त्री हर ले जाय तथा उनके सेवन करते दोष नहीं कह्या होय। जाके देव-गुरु पर-स्त्रीनतें हाँ सि-कौतुक करते होय, पर-स्त्री सेवते होय, सो धर्म मी कामी देव-गुरुन का उपदेश्या असत्य है । यह भी लौकिक करि खण्डिये है। कुशील है सो तौ महापाप, लोक मैं प्रगट कहा। अरु शील है सो उतम-धर्म है। तातें यह भी धर्म, लोकापवाद सहित तजिवे योग्य है। ऐसे सात व्यसन लौकिक मैं दण्डवे योग्य कहे हैं सो ऐसे व्यसनों का प्रवेश जाके धर्म मैं पाईए, जो धर्म लौकिक-नय प्रमाण ते स्वराड्या जाय, सो असत्य है। जो क्रोधी होय, ताको
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