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जीव दुर्वचन कहै, मारे, बन्धन देय । अरु वह तपसी काहु कं कछू नहीं कहै । कोई ते द्वेष नहीं करै, समता माव !" राखे, तो उस तपसी कं लोक कहैं, यह धन्य है। बड़े धीर समता परिणामी हैं। ऐसा जानि सकल लोक पूजे हैं। कोई मान नहीं करै, तो लोक कहैं यह बड़ा मनुष्य है। याक मान नाहीं। कोई दगाबाज नाही होय तौ लोक कहैं, यह बड़ा शुद्ध जोव, सरल परिणामी है। याके कुटिलताई नाहों, यह धन्य है। रोसा जानि स्तुति करें, याकौं पूर्जे। कोई परिग्रह पुन, स्त्री, घर, धन तजि वन में रहै तौ लोक कहैं यह धन्य है। सर्व घर-धनभोग तजि समता परि योग धरचा है। ऐसा जानि सर्व लोक पूजै और कोई नगन रहता होय । मिले तो खाय नहां भूखा रहै। काहू पै जांच नाहीं। तौ लोक याकी पूजा करें। ऐसे कहे लौकिक करि पूजने योग्य जे जगत् गुण सो जिस धर्म मैं इन गुणन का कथन होय सो धर्म पूजने योग्य सत्य धर्म है। ऐसे तो लौकिक प्रमाण करि धर्म की परीक्षा करिये। सो यह जिन-धर्म लौकिक करि पृज्य है। ऊपर कहे जे गुण यह तिन सहित है। ताते लौकिक प्रमाण करि खरड्या नहीं जाय है। ऐसे लौकिक प्रमाण करि अखण्ड जिन-धर्म जानना। इति लौकिक प्रमाण । ।
आगे परम्पराय कहिये है। बहुरि परम्पराय ताकौं कहिए। जो वस्तु आगे तें होती आई होय। अरु काल-दोष ते वर्तमान काल कबहूँ नहीं होय, तो परम्पराध त जानि लेनो। जैसे-अपने पितामह (पिता के पितादिक) कुल विर्षे आगे बड़े थे अवार वर्तमान काल मैं नाही सर्व परलोक गए। परन्तु तिनको बड़ाई धन की प्रचूरता हुक्म शुम क्रियादि और के मुख से सुनि जानिए है जो हमारे बड़े ऐसे थे। तिनकी ऐसी धर्म-कर्म रूप व्यवहार-चलन क्रिया थी। ऐसी प्रतीति भई तथा कागज-पत्रन ते देखिये जो अपने बड़ों के लाखों रुपये औरन से लैने हैं और लाखों ही बडौं के शिर के देने हैं। सो सर्व रोजनामचा-खातात तें जानिये। परम्पराय प्रमाण करिके हो लेनेवालों तें लीजिये हैं और देनेवालोंकों दीजिए है। सो आप तौ लेने-देने ते वाकिफ-हाल नाहीं। परन्तु रोजनामचा-खातान तै खत-पत्रन ते देना-लेना सत्य होय है। सो यह परम्पराय प्रमाण है। तैसे हो तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र, प्रतिनारायण, कामदेव, नारद, रुद्र, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर, अर्धमण्डलेश्वर इत्यादि पदस्थधारी पुरुष मागे भये थे। अब काल-दोष तें इन पदस्थधारी नाही; परन्तु