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तिनके नाम लौकिक मैं सुनिए हैं। सौ तिन पदवीधारीन पुरुषन के कुल तिनके माता-पितान की परिपाटी
आदिक कथा तथा तिनको उत्पत्ति नाम राज्य-सम्पदा भोग सुख पुरुषार्थ शूरपणा पराक्रम सैन्य दल इत्यादिक वार्ता है, सो परम्पराय प्रमाण है। सो ऐसा परम्पराय शास्त्रन ते जानिए अरु लौकिक ते जानिए है ऐसा ही श्रद्धान करिय है। सो जिनके धर्म-शास्त्रन मैं रोसे पुरुषन को उत्पत्ति कुल राज्य-सम्पदा भोग सुख वैराग्य भरा दीक्षा ग्रहण मुनिपद का पालना मुनि-प्रायकन का आचार प्रवृत्ति इत्यादिक कथन जहाँ पाइए, सो धर्म सत्य है। सो ऐसे परम्पराय करि मिलता होय सो धर्म सत्य है और नग्न गुरु जिनका निर्दोष भोजन आरम्भ रहित वीतराग अनेक गुण सम्पदा सहित देव-इन्द्रन करि वन्दनीक मुनीश्वर आगे थे अब कालदोष ते नाही, परन्तु शास्त्रनत सुनिये हैं कि ऐसे गुरु होंघ सो आगे थे तोरसे गुरनका कथन मैं होय परम्पराय प्रमाण है तथा नवनिधि चौदह रतन कल्पवृक्ष पारस चिन्तामणि, ए उत्तम वस्तु हैं। सो इनका नाम तो सुनिय है और अवार काल-दोष ते दीखता नाहीं। आगे थे सो तिनके नाम गुरा आकार और ए कौन-कौन के होंय सो ऐसा कथन जिस धर्म विषै होय सो धर्म परम्पराय प्रमाण करि शुद्ध सत्य है । या नय तें भी अखण्ड है। ऐसा जिन-धर्म अखण्ड जानना। इति परम्पराय प्रमाण । २। आगे अनुमान प्रमाण कहिये है। बहुरि अनुमान ताकौं कहिए जो अपनी बुद्धि के प्रभाव करि वस्तुको यथावत् विचारकै श्रद्धान कीजिये। जैसे-- लौकिक में तथा परम्पराय धर्म दया सहित कहें हैं। अरु कोई अल्पज्ञानी बैटक (शिकारी) व्यसन रञ्जित धर्म हिंसा मैं बतावै तौ विवेकी अनुमान से ऐसा विचारै। जो हिंसा मैं धर्म होय, तौ दीन जीवनकौँ तो सब मारें। रङ्कन कूदान कोई भी नाहीं देय। जहाँ रङ्क जाय सो धर्म होनेक हर कोई ही मारे। सर्वणीव धर्म के लोभी परस्पर वह वाकौ मारै वह वाकौ। धर्म के वास्ते सर्व परस्पर युद्ध करि मरें। सो तौ अनुमान मैं तुलती नाही
और लौकिक मैं भी दीखती नाहीं और लोक मैं भी धर्म के निमित्त केई तो सदावर्त देते दीखें हैं। कई धर्म निमित्त प्यासे कं जल पिया है। केई दया करि शीत मैं दीननकं वस्त्र देय हैं। इत्यादिक तौ लौकिक में दोसैं हैं। सो ऐसा भास है कि धर्म दयामय ही है और हिंसा मैं धर्म सम्भवता नाहीं ऐसा विचार बुद्धि ही ते अनुमान करि धर्म का श्रद्धान दयामयी करे। इनको आदि अनेक नयन करि, वस्तुको अनुमान ते विचारना।