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लोक कहैं यह महा क्रोधी है। पापी, बात कहै हो लई है। मारै है। याका सहज-स्वभाव सर्प समान है। जो कोई मानी होय, ताकी लोक कहैं यह बडा मानी है, सो कहों मारचा जावेगा, बहुत-मान योग्य नाहीं। मायावीकों लोक कहैं, यह बड़ा दगाबाज है। याके चित्त को कोई नहीं जाने। यह महापापी है। कोई ।। १७१ लोभी होय, तो ताकौं लोक कहैं, यह बड़ा लोभी है। याकै चित्त पास बड़ा धन है। यह वा धन क नहीं खाय है। नहीं काहकों खवावे है। नहीं धर्म मैं लगावै है और भी धन जोड़वे का उपाय करें है। ऐसे यह क्रोध-मान-माया-लोभ सहित जीव होय, जो पर कू मारने कूशस्त्र धारते होय रोसो कषाय जाके धर्म मैं करनी कही होय, जाके देव-गुरु-भक्त महाकषायो होय, सो भयानीक-धर्म तजवे योग्य है । तात धर्म कषाय रहित है 1 लौकिक विर्षे बड़ा परिग्रह-प्रारम्भ होय, ताकू बड़ा गृहस्थ कहिए 1 पुत्र-स्त्री आदि कुटुम्ब होय, काहत स्नेह, काइते देष करनहारा होय, रागी-द्वेषी होय, ते गृहस्थ हैं । सो जाके धर्म मैं परिग्रह-आरम्भकुटम्ब सहित, रागी-देषी देव-गुरु, कहे होंय । सो धर्म संसार विर्षे भ्रमण करावनहारा है। क्यों? देखो, लोक विष तो त्याग पूज्य है। अब भी जो घर कुंतजि, वन मैं रहैं । नगन रहैं तथा लंगोट मात्र होय, तिनकं बड़े-बड़े परिग्रह धारी राजादि, पूजते देखिए हैं। तातै परिग्रह सहित जे देव-गुरु हैं, सो लौकिक ते निषेधिये है। तातें धर्म सोही सत्य है जाके देव-गुरु, राग-द्वेष-परिग्रह रहित होय। इत्यादिक लौकिक प्रमाण तें जो धर्म स्वरड्या जाय, तो और प्रमाण ते तो स्वरडै ही खण्डै। ऐसे जे-जे दोष लौकिक निन्द्य हैं, तिन सहित कोई धर्म होय सो असत्य है। कोई लौकिक मैं भगवान की पूजा करें, दान देय, तप संयम करें, समता भाव सहित रहै, शोलवान होय, जाके क्रोध-मान माया-लोम दीर्घ नाहों होय इत्यादिक गुण हैं, तिनको सर्व लोक पूर्ज हैं। अच्छे जानि प्रशंसा करे हैं। कोई जीव प्रभु की पूजा स्तुति करें, तो ताकौं देखि लोक कहैं, यह धन्य है, भलाभक्त है। थाके सदेव प्रभु की भक्ति-पूजा-समरश हो रहै है। ऐसा जानि सर्व पूज। कोई धर्मात्मा कूदान देता देखें, ता लोक कहैं। यह धन्य है। महादयावान है। बहुत दीनन कं दान देय, तिनकी रक्षा कर है। कोई तपसी नाना उपवास सहित अनेक तप-संयम करता होय, तौ लोक याको अवस्था देखि, हर्ष पाय कहैं। यह तपसी महासंघमी है, पूज्य है। सर्व याको ऊँच जानि पूर्जे। कोई समताभावी क, दुष्ट