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सहित जिनवाणी मैं कथन है। बहुरि कैसा है जिन-धर्म जो पञ्च प्रमाणन करि खण्ड्या नाहीं जाय हैं। सो पश्च प्रमाण कौन से ? सो कहिए हैं। लौकिक प्रमाण, परम्पराय प्रमाण, अनुमान प्रमाण, शास्त्र - प्रमाण और प्रत्यक्ष प्रमाण - ये पश्च प्रमाण हैं। सी इन करि जो धर्म खण्ड्या जाय सो धर्म झूठा है। इन पांच प्रमाण का सामान्य भेद करि निर्धार करिए है । जो वस्तु लौकिक विषै निषेधी होय सर्व करि निन्दवे योग्य होय जाके किये राजपथ का दिया दण्ड पावें ऐसी क्रिया जाके देव-गुरु करते होंथ, सो ताके देव-गुरु झूठे हैं। तिनके करवे का जिनके शास्त्रन मैं कथन होय, तिनका धर्म झूठा अयोग्य है। तजिवे योग्य है। सो ही कहिये है। जैसेलौकिक मैं सप्त-व्यसन निन्द्य हैं। सो जिनके देव- गुरु द्यूत-व्यसन रमते होंय, सो हीन हैं। लौकिक मैं द्यूत मैं ताकूं लुच्चा कहैं हैं । तिस जुवारी की कोई प्रतीत नहीं करें। ऐसा जुवा जाके देव-गुरु रमते होंय, सो धर्म जियोग्य है पर जीवन का मास काहीवर कोई बता नाहीं अरु कदाचित् छोवै हो तौ महाग्लानि उपजे I जब स्नान करें सर्व वस्त्र उतारै तब शुद्ध होवे । जाके देखें ही घृणा आवै दीखते महाअशुभ महादुर्गन्ध जाकौं स्वनादिक ( कुत्ते आदिक) भी नहीं ग्रह ऐसा अशुचि का समूह आमिष है। ऐसे मांसक जाके देव गुरु खावते होय जिनके शास्त्रन मैं मनुष्यनकूं मांस का भोजन लेने योग्य कह्या होय । सो धर्म पापाचारी तजवे योग्य है। यह धर्म लौकिक के निषेधवे योग्य है और मदिरा के पीये बुद्धि नष्ट होय। माता, पुत्री, स्त्री, भगिनी इत्यादिक भेद ताक नहीं भाय सर्व एक-सी जाने पग-पग पै मूर्छा खाथ पड़े है। लोकन मैं हाँ सि होय अनेक लोक ताकी अज्ञान चेष्टा देखि कौतुक देखवेको इकट्ठे होंय ताकी सर्वजन निन्दा करें। ऐसी मदिरा जगत्-निन्द्य ताक जाके शास्त्र मैं लेने योग्य कहो होय ऐसी मदिरा जाके देव-गुरु-भक्त लेते होंय, सो धर्म निन्द्य होन | तजिव योग्य है। ये भी लौकिक के निन्दवे योग्य है जिस वेश्या का तन सदैव सूतवत् है । जाकी जाति-कुल की खबर नांहीं। सर्व ऊँच-नीच कुल के मनुष्यन की भौगनहारी। निर्लज्जता की हद्द जाके घर मार्ग को राह विवेकी भूल हू नहीं जाय । ऐसी कुशील मन्दिर या वेश्या जाके घर गमन किए लोक निन्दा पावै । पञ्च सुनै तौ पोति तैं निकास। ऐसी वैश्या- कंचनी का सेवन जाके देव-गुरु-भक्त करते होय, सो धर्म भी असत्य पापमयी, झूठा है। यह भी लौकिक तैं निन्द्य है। कोई जीव काहू जीव का घात करें, तौ लोक कहैं, याने पंचेन्द्रिय मनुष्य या पशु
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