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ये नारकी जीव इत्यादिक कहना, सो पर्यायाथिक-नय हैं तथा ऐसे काहिरा जो ये जीव अनन्तकाल का जन्ममररा करे है। रा सर्व पर्यायार्थिक-नय हैं। इनका सामान्य भाव कह्या। विशेष नव ही नयन का नय चक्र आदि ग्रन्थन तें जानना। इनही नव नयन करि अनेक वस्तुन का स्वभाव साधिये है। आगे कहिये है सप्तमङ्ग सो भी इनही नय करि सिद्ध होय हैं। तिनके नाम-स्थात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात् अस्तिनास्ति, स्यात् । अवक्तव्य, स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य, स्यात् अस्तिनास्ति अवक्तव्य- समभङ्ग हैं। अब इनका अर्थ एक ही वस्तु पै नय प्रमाण सप्तम साधिरा है । जैसे—कोई नथ कही हमारा तन स्वद्रव्य, क्षेत्र काल, भाव स्वचतुष्टय की अपेक्षा अस्ति है। तब जैनी ने कह्या स्यात् कोई नय करि।। तब काह ने रतन अशी पारी और की किरतना पर-ट्रक मायनास्ति और मेरो अशर्को अपने द्रव्य क्षेत्र काल भाव ।। करि स्वचतुष्टय की अपेक्षा अस्ति है। तब जैनीनै कह्या स्यात् कोई नय करि । २अपने चतुष्टय की अपेक्षा रतन अस्ति है। पर अशर्फी के चतुश्य को अपेक्षा रतन नास्ति है। अरु अशर्फी के चतुष्टय की अपेक्षा अशर्फी अस्ति है। रतन के चतुष्टय को अपेक्षा अशर्फी नास्ति है। रोसे एक बार हो एक वस्तुमैं अस्ति नास्तिपना दोऊ सधै है। तातें अस्ति नास्ति। तब जैनी ने कह्या स्यात् कोई नय करि। ३। जो रतन कं अस्ति कहिये, तौ अशर्फी अपने चतुष्टयकों लिए है। सो ताकौं नास्ति कैसे कहिए ? अरु रतनक नास्ति करि अशफो अस्ति कहिए तौ रतन अपने चतुष्टय ते अस्ति है ताकौ नास्ति कैसे कहिए ? अरु एक ही बार अस्तिनास्ति कही जाती नहीं। तातै अवक्तव्य कहैं । तब जैनो नै कह्या स्यात् कोई नय करि। 81 अरु हे भाई! रतन नौ अस्ति है अपने चतुष्टय करि और रतन के चतुष्टय करि अशर्फी नास्ति भी है। परन्तु कही नाहीं जाय ! क्योंकि अपने चतुष्टय तें जशर्फी अस्ति है तातें स्यात् अस्ति वक्तव्य है। ५१ असो के चतुष्टय करि रतन नास्ति है। परन्तु कह्या नहीं जाय क्योंकि रतन प्रत्यक्ष है। तातै स्यात् नास्ति वक्तव्य कहैं । ६ । रतन अपने चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति है । अरु पर चतुष्टय की अपेक्षा नास्ति है । परन्तु दोऊ एक ही बार कहे जाते नाहीं। अरु अशर्फी अपने चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति अरु पर के चतुष्टय की अपेक्षा नास्ति है, यस्तु कहा नहीं जाय। तातै स्यात् अस्तिनास्ति अवक्तव्य कहैं।७।ऐसे सप्तमग अनेक पदार्थन पै द्रव्य क्षेत्र काल भाव करि साधिये। ऐसे सप्तमगन