________________
१७5
सो अनुमान प्रमाण सत्य है। ऐसे जिस धर्म मैं अनुमान का कथन होय, सो सत्य-धर्म जानना। सो जिन-धर्म अनेक नय युक्ति और अनुमान का समुद्र है। सो यह अनुमान नय ते अखण्ड जानना । इति अनुमान प्रमाण ।३।
आगे शास्त्र प्रमाण कहिर हैं। केतक वस्तु पदार्थ ऐसे हैं, जो शास्त्रन प्रमाण कोजिय है। द्रव्य-पदार्थ | अपने श्रद्धानपूर्वक तथा प्रत्यक्षपूर्वक भासे हैं। सो तो निसन्देह हैं ही और केई पदार्थ ऐसे हैं। जिनकौं निर्धारि करने को बुद्धि, समर्थ नाहीं। तिन वस्तुन का निर्धार शास्त्रन ते करिए है। जैसे—लौकिक मैं किसी के लेने-देने मैं सन्देह होय तो सर्व कहैं तुम अपने कागज-रोजनामचा-खाते लावो। जो कागजन मैं निकसैं सो सत्य है। तैसे ही केतेक वस्तु मति-श्रुत-ज्ञानतें प्रत्यक्ष गोचर नाहीं। जैसे--स्वर्ग-नरक को कहा रचना है ? तीन लोक की रचना कैसे हैं? जीव, देव, मनुष्य, पशु, नारक मैं कैसे भ्रमैं ? सिद्ध पद कैसे होय ? इत्यादिक तथा मेरु पर्वत कुलाचल महान नदी असंख्यात द्वीप समुद्र इत्यादिक नाम तो सुनिए हैं, परन्तु प्रत्यक्ष नाहीं । सो शास्त्रन तें जानिए हैं सो जिन शास्त्रन मैं इन स्वर्ग नरक की रचना काय काय दुख-सुख का कथन होय तथा मेरु कुलाचलादि अगोचर वस्तुन का कथन जिस धर्म मैं होय, सो धर्म सत्य है। अनेक शास्त्रन में प्रमाण करि भी यह जिन-धर्म ही अखण्ड्या जानना । इति शास्त्र प्रमाण 18। आगे प्रत्यक्ष प्रमारा कहिए है। बहुरि जो वस्तु इन्द्रिय-गोचर तथा श्रद्धान-गोचर दृढ़ होय सन्देह रहित होय, सो प्रत्यक्ष कहिर है । जैसे—कोई पुरुष अपने गले विर्षे रतनन का हार परम उत्तम पहरे तिष्ठ है। ताकी शोभा देखि-देखि आनन्दित होय है। सो हार वा पुरुष के प्रत्यक्ष है। कोई आय तिस पुरुष के कहै, जो यह हार नाहीं है और ही कडू है, तो वह पुरुष कैसे मानै ? कहनेवाले कही मन्दज्ञानी जाने। वाक तो प्रत्यक्ष है। ताकै सुख कं भोग है। तैसे ही जीवकै सम्यग्दर्शनादिक गुणमयी रतनन का हार धरनेहारा भव्य कै आप पात्म-देखने जाननेवाला जो आत्मा सो प्रत्यक्ष है। इहां कोऊ प्रश्न करै। जो आत्मा तौ अमर्तिक है। सो समर्तिक द्रव्य अव्रत सम्यग्दृष्टिकै प्रत्यक्ष केसे होय ? ताका समाधान । जो प्रदेशन की अपेक्षा तौ आत्मा प्रत्यक्ष नाही, परन्तु गुरा अपेक्षा प्रत्यक्ष है। चेतन्य गुण सम्यग्दृष्टि के प्रत्यक्ष अनुभव मैं आवे है। तातै प्रत्यक्ष-सी प्रतीति कं लिये है। जैसे-तहखाने मैं तिष्ठता कोई पुरुष राग करै है। सो पुरुष तौ दृष्टि-गोचर नाहीं। परन्तु रागको सुनें तें ऐसी दृढ़ प्रतीत होय है, जो यह
७८