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इति मुक्तावली तप। ८। आगे रत्नावली तय कहिये है। रत्नावली तप को विधि-उपवास २, पारणा ।।। उपवास २. पारणा उपवास ३. पारगा। उपवास ४, पारणा। उपवास ५, पारणाश उपवास ५, पारगा। उपवास, पारणा। उपवास ३, पारणा। उपवास २, पारणा। उपवास २, पारणा । ऐसे या रत्नावली तप के उपवास तीस और पारणा दश सर्व चालीस दिन का तय है । ताकी तपसी गुरु कर है। इति रत्नावली तपा। आगे कनकावली तप कहिए है। कनकावली तप को विधि— शुक्ल पक्ष की पड़िवा पांचें और दर्श र तीन तौ शुक्ल पक्ष की और कृष्ण पक्ष की दोज, छठि और बारसि ऐसे एक महीना के उपवास षट होय । एक वर्ष के बहत्तरि उपवास करै। ऐसा कनकावली तपकौं तपसी करैं हैं। इति कनकावली तप।२०।आगे आचारवर्धन तप कहिये है। आचारवर्धन तप की विधि---उपवास २, पारणा । उपवास २. पारणा । उपवास ३, पारणा १ । उपवास ४, पारणा १। उपवास ५, पारणा । उपवास ६, पारणा । उपवास ७. पारणा । उपवास ८, पारणा । उपवास इ. पारणा । उपवास २०, पारणा । उपवासह, पारणा । उपवास . पारणा । उपवास ७, पारणा उपवास ६, पारणा । उपवास ५. पारणा। उपवास 8. पारणा । उपवास ३, पारणा उपवास २, पारणाउपवास, पाराशरोसे या व्रत के उपवास सौ और पारणा उन्नीस सर्व मिलि एकसौ उन्नीस दिन का तप है। ताहि वीतराग तपसी करें हैं। इति आचारवर्धन तप।१२। आगे सुदर्शन तप कहिये है। या तप की विधि---तहां उपशम सम्यक, क्षयोपशम सम्यक और क्षायिक सम्यक—ये तीन सम्यक हैं। तिन एक-एक सम्यक के शङ्का कांक्षादि आठ-आठ दोष हैं। सो तीनों सम्यक के चौबीस मल दोष भये। तिन चौबीस दोष के चौबीस उपवास एकान्तर करें। या तप के सर्व अड़तालीस दिन भये। २२ । इत्यादिक तप तपसी गुरु करें। इनकौं आदि लय अनेक दुर्द्धर तप तीन काल के करें। अपनी परणति महाधर्म शुक्लध्यानमय राखि समता की वृद्धि करैं सो तपसी जाति के मुनि हैं। जे यति आचार्य के पास शास्त्र अभ्यास कर तिनकं शिष्य जाति के मुनि कहिये। जैसे—लौकिक मैं जेते जाका पिता जीवें ताकौ कुमार कहैं हैं। तैसे जेते काल जिनके आचार्य गुरु विराजै होंय उन गुरुन शास्त्राभ्यास करें, सो शिष्य जाति के मुनि कहिये।। अनेक रोगन सहित शरीर के धारी मुनीश्वर, वीतरागी, तन भोगनतें