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५.६.
तातें भी विवेकी! तुम एक वचन की ठीकता करके कही। तब कर्त्तावादी ने विचारी । जो कर्ता कहैं. तो संसार का अरु कर्ता इन दोऊ का ही अन्त भावे । तब कर्त्तावादी बोल्या जो कर्त्ता भी अनादि अरु सृष्टि भी अनादि है। तब स्याद्वादी नै कही जो सृष्टि अनादि है तौ कर्ता की महन्तता कहाँ रही। कर्ता कहना शब्द वृथा भया । अरु हे भ्रात! और भी देखो जो तुम कहाँ हो कि कर्ता प्रथम तो बनावें है जरु पीछे कर्ता हो चाहे तब मारे है। तौ या विषै कुछ गम्भीरता नाहीं। जो प्रथम तो बनायें पीछे वाक आपही बिगाड़े तो बालक की-सी लीला भई । जैसे प्रथम तौ नाना प्रकार रचना, खेल मैं बनावे, पोछे बिगाड़े तातै भो भवि! प्रथम तो बनावै पोछे बिगाड़े, ताको बालक समानि कौतुकी अज्ञानी जानना तथा संसारमैं कोई एक जीव मारै, ताक दोष लगावें हैं । सो कोई अनन्ते जीव मारै तौ ताकी तौ बड़ा हो दोष होय तथा जाकौं आप पैदा करै, सो पुत्र समान हैं, अरु ताहीं कूं मारै तौ पुत्र मारे - सा दोष लागे । तातें कर्त्ता कौं हर्त्तापना सम्भवे नाहीं । अरु तुम कहोगे कर्ता हरै, ताक दोष नाहीं । सो तुम देखो कोई को मारे हैं तब प्रथम तो क्रोध-अग्नि उपजे है तब अन्य (दुसरे) का घात करें है। बिना कषाय पर की घात होतो नांही। तातें जाके कषाथ होय सो संसारी, तन का धारी जगत् जीव जानना । ता विषै नवीन जीव उपजावने की शक्ति होती नाहीं । तातें है भाई ! घनी (बहुत) कहाँ ताई कहिए। अनेक न से कर्तापने का वचन खण्डित होय हैं। तातें भी धर्मार्थी ! ऐसा सरधान तजना ही योग्य है । अब तूं देखि, जो यह संसार अनादि-निधन है, कोई का किया नाहीं । इस संसार विषै अनन्ते जीव हैं। सो भी अनादि-निधन हैं, काहू के किये नांहीं । अनन्ते जीव द्रव्य, अपनी-अपनी मित्र-मित्र सत्ताको लिए अपने-अपने गुण- पर्याय सहित अनादिकाल से चार गतिनि विषै, सुख-दुख भोगवें हैं । जैसी जैसी अपनी परिणति उसके अनुसार पुण्य-पाप के फल को भोगता, पुण्य-पाप उपार्जता, जगत् मैं भ्रमण करें हैं। ताही का फल सुरग नरकादिक के सुख-दुख को पावें हैं । अरु जब यह आत्मा पुण्य-पाप के उपजावनै रहित होय है। तब वीतराग दशाकों धारेगा। तब ही सर्व कर्म नासिके, परमात्मा - सिद्ध पद कौं धारैगा । तब यह सिद्ध भगवान, ज्योतिस्वरूप, स्वयंसिद्ध जगतनाथ काहू का कर्त्ता होता नाही अरु जेते कर्त्ता हर्त्ता हैं, तेते भगवान नाही और सिद्ध भये, कर्ता नहीं। तातैं जो नवीन आत्मा कोई उपजावे है ऐसा सरधान जार्के मतमैं होय, ताके आप्त आगम,
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