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|| तौ ऊगतौ नाहीं। तैसे ही इस संसारी अशुद्ध आत्माको कर्मरूपो छिलका लगा है, तेते काल तौ चारि गति
शरीरन मैं उपजि, शुभाशुभ फलकौ भोगवता उपज है । जब नाना प्रकार चारित्र सहित तपकरि अष्ट कर्म नाशतें, कर्म-रहित शुद्धात्मा होय सिद्धलोक विर्षे विराज हैं तब पीछे संसारिक शरीर कबहूँ नहीं धारे हैं। जे पात्मा अवतार धारे हैं सो संसारी हैं। शुद्धात्मा नाहीं। शुद्ध है ताके अवतार नाही है। कोई कहै जो भगवान तो शुद्ध ही है, परन्तु जब कोई देव, दानव, राक्षस, भगवान की प्रजा को पीड़ा करे है। तब वह ज्योतिस्वरूप परमात्मा भगवान, प्रजा की रक्षा करवे कों, राक्षसनिकै मारिवेकौं, अवतार लेय है। इस भांति शुद्धात्मा अवतार नाहों लेय है। ताकौं कहीए है। हे भाई! तैने कही सो तेरे कहने करि और दोष प्रगट भया। तूनें कही जो भगवान की प्राक पर पड़ गदर, दानव. गोटा उपजावे हैं तिन राक्षसादि मारवेकौं अरु प्रणा की रक्षा-निमित्त भगवान अवतार लेंय हैं। सो प्रजा तें तो रागभाव आया और राक्षसादिक ते द्वेष भाव आया। तातें हे भाई ! जाके राग-द्वेष होय, सो भगवान नाहीं। भगवानकै रागद्वेष नाहीं। परको मारै सो क्रोधी होय है। सो क्रोधी जीव जगनिन्दा पावै है। तातै कोधी होय सो संसारी है, भगवान नाहीं। तातै धर्मार्थो तूं रोसा जानि जाके काम, क्रोध, राग, द्वेष, मान, मत्सर, छल, जन्म, मरण होय सो भगवान नाहीं ऐसा जानना। देखि, गर्भवास मेटवे के निमित्त नाना प्रकार के दुधर तप कर बाईस परीषहन के महासंकट सहके वीतराग भाव धरिक महाकठिनतें कर्मनाशिकरि मोक्ष भर तब बन्दोवाने तं छुटै। गरमवास के महादुखनतें बचै। अब फेरि गर्भवास के विकट दुखनमैं कैसे जोय ? कबहूँ भी नहीं जाय । जैसे कोऊ मले आदमीकौं दोष लगाय कुतवाल ने पकरि के तहखानेमैं मूंधा। तहाँ मलमूत्र करना, तुच्छ अन्न जल देना, सो वह महामरस समानि दुख सहता व्याकुल भया ।
रोज के रोज नाना प्रकार दुख भोगना । औरन के दुर्वचन सहता। ऐसे महादुख सदैव देखि व्याकुल होय इस ।। भले आदमी ने बिचारी, बन्दीखानेमैं दुःख भोगते दीर्घकाल भया सो कैसे छूटिये ? तब याने कोई बीचवाले की || बड़ी स्तुति करी। अरु कही मैं इहां महादुखी हौं सौ यह कुतवाल माँगै सौ दैहों। मोकों छोड़ो, मैं महादुखी । हों। तब बीचिवाले ने याकी दया करि कुतवाल कूबड़ा धन देना कराय यह छुड़ाया। वाछित धन देय बीचिवाले
की बड़ी स्तुति करि उपकार मानि छुटा। कठिन हैं अपने घर आया। कुटुम्बीजनतें मिल महासुस्ती भया। अब
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