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पदारथ असत्य हैं। ऐसे नवीन जीव का कर्ता कोई है ऐसा मान था सो ताका सरधान मिटाया शुद्ध सरधान कराया। जात्मा स्वयंसिद्ध है काह का किया होता नाहीं ऐसा दृढ़ कराय, जिन भाषित सरधान कराया। इति कर्तावादी को समझाय शुद्ध किया।
आगे कोई नास्तिकमतनि का सम्वाद लिखिये हैं। कई मतवाले जीवकों नास्ति ही माने हैं। ऐसा कह हैं । जो, जीव वस्तु है ही नाहों। वह जीव का अभाव मानें हैं। ते नास्तिकमती यह भी कहैं हैं। जो जीव होय तो दया करिए। तातें जीव नाही, जीव के अभावतें दया का मी अभाव है। अरु दया के अभाव ते पुण्य-पाप का भी अभाव है। जो जीव ही नाही. तो पुण्य-पाप का फल कौन भोगवे? तात पुण्य-पाप भी नहीं और पुण्य-पाय
जनाब समोर मला नीलगाव है। परलोक ही नाही, तो पुण्य-पाप का फल स्वर्ग-नरकादिक की गति कहाँ तें होय। तातें जीद नाही, पुण्य-पाप नाही, नरक-सुरगादिक गति भी नाहीं। संसार भी नहीं। ऐसा नास्तिमती का मत है। सो ता नास्तिमती तें कहिये है सो कौन है ? और यह तूं ऐसे ज्ञान का जाननेहारा कौन है? जाके ऐसा झान ते विचार होय है। सो तूं इसे निश्चय आत्मा जानि। आत्मा बिना, सन्देह काह के होता नाही। आत्मा ही के विकल्प उपजे हैं। ऐसा तूं सत्य करि जानि । यह शरीर है सो तो जड़ है, मूतिक है। या विष देखने-जानने को शक्ति नहीं। या तनकै विकल्प होता नांहीं। तातै यह पूछनेहारा, सन्देह करनहारा, हठ का करनहारा, वाटे-मीठे का स्वाद जाननेहारा, अन्छी-बुरी धारि रागद्वेष करनेहारा, क्रोध, मान, माया, सौम का करनेहारा कोई है। ताही क तं आत्मा जानि और लौकिक विर्षे मी जीव ऐसा कहैं हैं, जो फलानां मुवा है, सो फलानी जगह भूत भया है तथा केई कहै हैं जो हमारा फलाना बड़ा बुड्वा. अागे मूवा था सो अब आय, हमारे पास पूजा मांग है तथा केतेक लोक ऐसा कहैं हैं, जो फलाना मत भया था सो आज फलाने कौं लागा है। ऐसी जगत् विः प्रसिद्धि सब कोई कहै हैं । हे नास्तिमती ! अवार तोकू भी कहिये। जो समान भूमि विर्षे तुम रात्रि को रहो, तो तू भी या कहै कै जो मसान विर्षे बहुत भूत-प्रेत हैं। हम ऐसो भयानोक जगह मैं नहीं जोय, ऐसा तू मी कहै और लोक भी या कहैं हैं। तात हे नास्तिमती भ्रात ! तूं विचारि । जो कोई जीव है तभी तो मत भया है और कोई परलोक है तभी तो व्यन्तर देव भया है। तात हे नास्ति बुद्धि! तूं ऐसा जानि कि जीव है,