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शरीर, औदारिक अंगोपांग, बनवृषभनाराच संहनन, इन दश को व्युच्छित्ति करि सड़सठि का बंधलेय पंचम गुणस्थान में आया। तहाँ प्रत्याख्यान की चौकड़ी को व्युच्छित्ति करि तिरेसठि लेय छठे गुणस्थान में जाया। यहां प्रमत्त में सठि का बन्ध है। यहाँ षट् को व्युच्छित्ति तिनके नाम अस्थिर, अशुभ, असाता, अयश, अरति. शोकर षट् की व्युध्विति करि सत्तावन लेघ सात गुणस्थान गर तहां आहारक द्विक मिल्या तब गुरासठि का बन्ध अप्रमत्त में। तहाँ देवायु को श्रुच्छित्ति । अडरावन लेय पाठ में गुरास्थान आया 1 तहाँ छत्तीस प्रकृति की व्युच्छित्ति तहाँ सात भाग। सो प्रथम भाग में निद्रा, प्रचला र दोय की व्युच्छित्ति और चार भाग में व्युच्छित्ति नाहां। छठे भाग में तीसको व्युच्छित्ति। तहाँ अगुरुलघ, उच्छवास. अपघात और परघात--रा च्यारि अगुरुलघु चतुष्ककी हैं। तीर्थकर, निर्माण, पर्याप्त, प्रत्येक, त्रस, बादर, सुस्वर, शुम, स्थिर, जादेय दो, सुभग दो, वर्गचतुष्कको दो, च्यारि पंचेन्द्रिय दो, समचतुरस-संस्थान दो, शुभचाल दो, देवगति दो, देवगत्यानुपूर्वी दो, वेक्रियिक अंगोपांग दो, आहारक अंगोपांग एक, वैक्रियिक शरीर दो, आहारक शरीर तैजस शरीर कार्मस शरीर दो, ऐसे ए तीस प्रकृति को छठे भाग में व्युच्छित्ति । अरु सातवें भाग में हास्य, रति, भय, जुगुप्सा-रा च्यारि, र सर्व सातही भाग की छत्तीस को अष्ठम् में व्युधित्ति करि नवम् में गये तहाँ बा इसका बन्ध है इहाँ संज्वलन की चौंकड़ो की च्यारि, पुरुषवेद, इन पंचन को व्युच्छित्ति अनिवृत्त में करि सत्तरा प्रकृतिन का बन्ध दश में लेय गया। तहां सोलह की व्युच्छित्ति। ज्ञानावरगी को पांच, अन्तराय पाँच, दर्शनावरण च्यारि, उच्चगोत्र, यशस्कोर्ति, इन सोलह की व्युच्छित्ति दश में गुणस्थान में करि । एक सातावेदनीय रही। सो ग्यारह में, बारह में, तेरह में-इन तीन गुणस्थान में एक साता का बन्ध है। तेरह में तें चौदह में गये सब साता की || व्युच्छित्ति, तेरह में करि चौदहवेंगुणस्थान गया। तहा बन्ध नाहीं। यह कर्म बन्ध सयोग गुणस्थानवर्ती भगवान कह्या है। सो योगन के निमित्तपाय सातावेदनीय का उपचार करि बन्ध कह्या है। सो बन्ध स्थिति-अनुभाग रहित है। परन्तु निमित्त के सद्भाव होते प्रकृति प्रदेश बन्ध है। सो आत्माकों सुख-दुखकारी नाहों। सुखदुखदायक तौ स्थिति-अनुभाग है । सो मोह के अभावतै कषायन का अभाव है। अस कषायन के प्रभाव से स्थिति अनुभाग-बन्ध का अभाव है तथापि यहाँ योगत्रिक है। तातें योगन के निमित्ततें तैरहवें गुसस्थान ताई