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श्री
। समिति पांच, पंच इन्द्रिय वशीकरण, आवश्यकषट्, मभिशयन, मंजनतजन, वसनत्याग, कचलोच, एक बार। । भोजन, आसनस्थिति, दन्तधोने का त्याग-रा सर्व मिलि अठाईस भए। अब इनका सामान्य स्वरूप कहिय है। प्रथम ही महावत का सामान्य लक्षण-तहाँ सर्वत्र स्थावर जीवन पै समतामावधरि, जगत् का पीर हर, परमदयालु, कोमल चित्त का धारी, जगत् जीव सर्व आप समानि बानि सर्व जीव को रक्षा करनी, सर्व प्रकार हिंसा
का त्याग, सो अहिंसा महानत है। थाही का नाम अभयदान है। कई भारं जीव जन्मते गौ-पुत्र के मुखमैं मोती |सुवर्ण धरि दान देना। ताकौ अभयदान कहैं हैं। सो यह उपदेश लोभ के माहात्म्यतै भोरे जीवनक लोभी गुरु
ने बताया है। अभय नामतौ वाकौं कहिए जो ताक सर्व भयतै रहित करै। मरणते रातै, ताका नाम अभयदान है। सौ र अभयदान वाकों होय जो हिंसा रहित व्रत का धारी होय ।३। सर्व प्रकार जसत्य का त्यागी होय, जिन आज्ञा प्रमाण बोलना, सो सत्यमहाव्रत है । और सर्व प्रकार अदत्ता-दान जो बिना दिया पदार्थ नहीं लेना, राह पड़ी वस्तु मन-वचन-काय करि नाही लेय, इत्यादिक चोरो का त्याग, सो अचौर्य महाव्रत है।३। सर्व प्रकार स्त्री के विषयन का मन-वचन-काय, कृत कारित अनुमोदना करि देव-स्त्री, पशु-स्वी, मनुष्य-स्त्री, काष्ठ पाषाण को अचेतन-स्त्री-इन च्यारि प्रकार स्त्रीन के भोग स्पर्शनादि विषय का त्याग, सो ब्रह्मचर्य महाव्रत है। इहा प्रश्न-जो चेतन-स्त्री का त्याग सो शील है। अरु अचेतन-स्त्री का भोग त्याग को शोल कह्या, सो ब्रह्मचर्य महावत हैं। सो अचेतन मैं भोग काहे का है ? ताका समाधान मो भव्य ! भोग हैं सो यथायोग्य मनकरि, वचन करि, काय करि तीन प्रकार हैं। चैतन्य-स्त्री भोगतो तीनों प्रकार करि होय है। सो तुम मले प्रकार जानौ हो हो और अचेतन-स्त्री ते काय-वचन का भोग तो नाहीं बने है और मन के भोगकों अचेतन-स्त्री कारण है। अचेतन-स्त्री कं देखि हर्ष का होना कि जो यह चित्राम काष्ठ पाषाण की स्त्री महासुन्दर है याका रूप देवांगना समान है। इत्यादिक अचेतन-स्त्रोक देखि चैतन-स्त्री का समरनि करि हर्ष का होना, सोमन सम्बन्धी तथा कोई प्रकार वचन सम्बन्धी भोग जानना। तातें ब्रह्मचर्य व्रत का धारी अचेतन और चेतन-स्त्री का त्यागी जानना। यह ब्रह्मवर्य महावत है।४। कषाय नव, मिथ्यात्व एक, संज्वलन की चौकड़ी चार—ये चौदह प्रकार अन्तरङ्ग परिग्रह का त्याग और धन, धान्य, दासी, दासादि, दस प्रकार बाह्य परिग्रह-श चौबीस प्रकार
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