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दोष है।४। यतीश्वर दाता के सुहावनी बात कह भोजन लेंथ तो मुनिको दोष लागें। याका नाम विनयक-दोष है।५। मुनि दाता के घर भोजनका जाय नाड़ी वैद्यकादि औषधि बताय भोजन करें तो मुनिकों दोष लागै। याका नाम चिकित्सा-दोष है।६। जहां मुनीश्वर भोजन समय कोई कोप करि भोजन करें तो यतिको दोष । १३१ लागे। याका नाम क्रोध-दोष है। ७। मुनि आपकू उत्तम राजवंश का जानि दाता के घर मान सहित भोजन करें तौ यतिकौ दोष लागै, याका नाम मान-दोष है।ायतीश्वर अपने चित्त की गूढ वार्ता कोईको नहीं जानावता भोजन करै तौ यतिकौ दोष लागै, याका नाम माया-दोष है। यति मले भोजनकौं रुचि सहित करें तो मुनिकों दोष लागै, याका नाम लोभ-दोष है। २०1 मुनिराज दाता के घर जाय भोजन किये पहले दाता की स्तुति करें। तो यतिको दोष लागे। याका नाम पूर्व स्तुति-दोष है । १२ । यतीश्वर भोजन लिये पीछे दाता को स्तुति करै तौ मुनिको दोष लागे, याका नाम पश्चात्-स्तुति-दोष हैं। १२॥ यतीश्वर श्रावकनकौं पढ़ाय भोजन करें तो यतिकौं दोष लागै, याका नाम विद्या-दोष है ।२३। यति मन्त्र, तन्त्र, जन्त्र, टोना, जादू इन आदि अनेक अतिशय अपने-अपने श्रावकनको वताय तिनके भोजन कर तो मुनिको दोष लागै, याका नाम मन्त्र-दोष है। १४ । मुनीश्वर गृहस्थत नेत्र का प्रक्षन पेट रोगकू चूरन बताय भोजन करें तो यतिको दोष लागै, याका नाम मूल-कर्म (वश्य-कम)दोष है। २६। यह षोड़श दोषों की यति सावधानी राखे नाहीं तो मुनिकों दोष लागे, यति का पद कलङ्क पावै। ऐसे सोलह उत्पादन दोष हैं। आगे एषणा दोष दश कहिये हैं। भोजन करते ऐसा सन्देह उपजे जो यह भोजन शुद्ध है अथवा अशुद्ध है ऐसा सन्देह होते भोजन करे तो यतीश्वरको दोष लागै, याका नाम शंकित-दोष है। । यति दाता के हाथ चीकनै देखें तथा बासन चिकने देखें तो भोजन नहों लेंय अरु लेय तो यति कों दोष लागै, याका नाम मृक्षित-दोष है। २ । सचित्त वस्तु ते व भारी अचित्त वस्तुतें भी ढोकी जो भोजन वस्तु सो यति नहीं खाँय तो मुनिको दोष लागै, याका नाम पिहित-दोष है। ३। सचित्त पृथिवी जल. अग्नि, वनस्पति, बीज तथा वस जीव के ऊपर घरचा हुआ आहार मुनि नाहीं ग्रहण करें यदि करें तो याका नाम नितिप्त-दोष है। 81 सूतक के घर, रोगी के हाथ का, वृद्ध बालक नपुंसक गर्म सहित स्त्री इनके करते || भोजन नहीं लेंथ और जलती अग्निकौ बुझावती देखें तथा स्त्रीकों बालक चुखाती, बालकको आँचल से छुटावती
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