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अर्थ- अन्तरिक्ष-निमित्त, भौम-निमित्त, अंग-निमित्त, स्वर-निमित्त, व्यञ्जन-निमित्त, लक्षण-निमित्त, स्वप- | निमित्त, चित्र-निमित्त । अब इनका सामान्य अर्थ-जहां सूर्य-चिह्न, शशि-चिह्न, तारानझत्र-चिह्न, बादल-चिह्न, ।। सन्ध्या समय बाकाश के वर्णादिक-चिह्न इत्यादिक आकाश में शुभाशुभ उल्का (बिजुली) पातादि देखि शुभाशुभ कहैं । सो अन्तरिक्ष-निमित्त-ज्ञान है। १ । भूमि में रतन, सुवर्स, चाँदी, पाषाणदिक भूमि के चिह्न जानि शुभाशुभ बतावै सो भूमि-निमित्त-ज्ञान है । २ । मनुष्य तिर्यंचन के रस, रुधिर, प्रकृति इत्यादि चिह्न देखि शुभाशुभ कहै सो अङ्ग-निमित्त-ज्ञान है । ३। जहां मनुष्य तिर्यचन के शब्द सुनि शुभाशुभ होनहार कहै सो स्वर-निमित्त-ज्ञान है। ४ । जहाँ शरीर के तिल, मसा, करमैं, पांवमैं, उरमैं, मुखपे इत्यादि अङ्ग उपाङ्ग में तिल, मसा देखि शुभाशुभ होनहार बतावै सो व्यजन-निमित्त-ज्ञान है। ५। जहां शरीर में श्रीवत्स लक्षण, स्वस्तिक भृङ्गार, कलश, वज्र मत्स्यादिक चिह्न देखि शुभाशुम बतावै सो लक्षण-निमित्त-ज्ञान है।६। कोई वस्तु वस्त्रादि मूसादिक पशुनै काटी होय । ताकौ देखि शुभाशुभ चिह्न बतावै सो छित्र-निमित्त-ज्ञान कहिए । ७ । जहां नाना प्रकार के स्वप्न तिनक जानि तिनके शुभाशुभ लक्षण कहै सो स्वाप-निमित-ज्ञान है। ८। ऐसे श बाठ प्रकार ज्ञानकों आदि अनेक ज्ञान का शुभाशुभ बतावै सो विद्यानुवाद नामा पूर्व है । याके एक कोड़ी दश लाख पद हैं और जहाँ तीर्थङ्कर के पञ्च कल्याणक तथा और चरम शरीरन के एक दोय कल्याणन का कधन तथा ज्योतिष देवन का गमन किया होय सो कल्धारावाद-पूर्व है। याके छब्बीस करोड़ पद हैं
और जहां वैद्यक कथन, व्यन्तरादिक वशीभत करवे के विधान, विष उतारने के मन्त्रादिक इत्यादिक विधान जहाँ होय सो प्राणवाद-पूर्व है। याके तैरह करोड़ पद है और जहां सङ्गीत-कला, छन्द-कला, अलङ्कार-कला, चित्राम-कला, शिल्प-कला, गर्भाधान शोधवे की कला तथा स्त्रोन की चतुराई हाव-भावरूप । चौंसठि कला इत्यादिक कथन जहां होय सो क्रियाविशाल-पूर्व है । याके नब्बे कोड़ि पद हैं। जहां त्रिलोक विन्दु मैं तीन लोक ऊर्व, मध्य, पाताल तथा पाताल लोक विर्षे प्रथम पृथ्वी रतनप्रभा ताके तीन भेद हैं। खरभाग, पङ्कभाग, अब्बहुलभाग । तहाँ खरभाग सोलह हजार योजन मोटा है ताकू हजार-हजार योजन के मोटे सोलह भेद हैं। तिनके नाम-चित्रापृथ्वी, वज्रापृथ्वी, वैडूर्या, लोहिता, मसास्कल्या, गोमेधा, प्रयाला.