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सिद्धि है। ताके ऊपर संख्यात योजन सिद्धशिला है। ताके ऊपरि तनुवातवलय मैं सिद्ध चक्र चैतन्य अमूर्तिक सिद्ध भगवान विराजे हैं। तिनको बारम्बार नमस्कार होह और जिस क्षेत्रमैं सिद्धदेव विराजे सो पैंतालीस लाख योजन सिद्ध क्षेत्र है। तिस उत्कृष्ट तीर्थक्षेत्र कं नमस्कार होहु । इति स्वर्गन की ऊँचाई। ___ आगे विमानन के वर्ग कहिये है। आगे प्रभा गुगल के विमानन के चली गई हैं। दूसरे गुगल ले विमान कृष्ण बिना च्यारि वर्ग के हैं। तीसरे युगल के विमान नोल, कृष्ण बिना तीन वर्ग के हैं। चौधे युगल के विमान तीन कृष्ण जिना तीन वर्ण के हैं। पाँचवें युगल के विमान पीत श्वेत दोय वर्ग के हैं। छठे युगल के विमान पीत श्वेत वर्ण के हैं और सातवें युगल, आठवें युगल तथा अहमिन्द्रन के विमान-सर्व एक शुक्र वर्ण के ही हैं। इति विमान वर्णन ! आगे स्वर्गन के आधार कहिये हैं। तहां प्रथम युगल तो जल के आधार है। दूरसा युगल पवन के आधार है। तीसरा युगल पवन के आधार है। चौथा, पाँचों, छठा-ए तीन युगल जल पवन के
आधार हैं। सातवाँ, आठवा युगल तथा अहमिन्द्रन के विमान सर्व आकाश के आधार हैं। इति आधार। आगे स्वर्ग प्रति देवन के काम सेवन कैसे है, सो बतावै हैं। प्रथम युगल मैं देवनको काम सेवन मनुष्य पशुवत् है। दूसरे युगल मैं तनतें तन स्पर्श कर तृप्ति होय है। तीसरे युगल मैं देव देवीनकों परस्पर राग दृष्टि करि रूप देखि ही भोगन की तृप्ति होय है। चौथे युगल में भी रुप देखि तृमि होय है। पाँचवें, छठे युगल में देव देवीन का परस्पर राग का भरचा शब्द सुनि भोगवान् तृप्ति होय है और सातवें, बाठवें युगलन के देव देवीन के मन में भोग अभिलाषा भई अरु तृप्ति होय है। अरु ऊपरि लै अहमिन्द्रनकौं काम सेवन की इच्छा नाहों। इति काम सेवन । आगे देवन के अवधि क्षेत्र कहैं। तहाँ प्रथम युगल के देवन को अवधि का विषय प्रथम नरक पर्यन्त जानें। इतनी ही विक्रिया होय, अधिक नाहों और दूसरे नरक पर्यन्त दूसरे युगल के देवन की अवधि, विक्रिया है और तीसरे युगल के देवन की अवधि विक्रिया तीसरे नरक पर्यन्त हैं। चौथे युगल के देवन की अवधि तीसरे नरक पर्यन्त शुभाशुभ जानने । इतनो हो विक्रिया होय। पाँचवें, छठे युगल के देवन की अवधि, विक्रिया चौथे नरक पर्यन्त जानना और सातवें, आठवें युगल के देवन की अवधि, विक्रिया पाँचवें नरक ताई होय। नव ग्रैवेयक के देवन की अवधि, विक्रिया छठे नरक पर्यन्त होय है। नव अनुदिश पंच पंचोत्तरन के देवन की अवधि, विक्रिया