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कथन जो आत्म-वीर्य कहा, भाव-वीर्य कहा इत्यादि वीर्य का कथन जहां होय तहां सामान्य भाष जो चेतनाशक्ति सहित अनन्त पदार्थन मैं प्रवर्तते खेद नहीं होय सो ही अनन्त-वीर्यरूप आत्मा का परिणमन सो काल-वीर्य १४ जानना और अनन्त पदार्थ जीव अजीवनको अवगाहना देने की शक्ति सो क्षेत्र का वीर्य है और इस लोक मैं || तिष्ठते द्रव्य जीवाजीवरूप षटु द्रव्य तिनका तीन काल सम्बन्धी शुभाशुभ परिणमन जानने रूप केवलज्ञान सो भाव-वीर्य है। इत्यादिक वीर्य का ही व्याख्यान जामैं होय सो वीर्यानुवाद-पूर्व है। याके सत्तरि लाख पद हैं || जौर जीव-अजीवादि द्रव्ध के स्वभाव अस्तिनास्ति रूप काल क्षण आदि जामैं कथन होय सो अस्तिनास्ति-पूर्व है। याके साठि लान पद है और जहां आठ ज्ञान का लक्षण कहा ज्ञान का फल कहा 1 शान का विषय कहा । इत्यादिक कथन जामैं होय सो ज्ञानप्रवाद-पूर्व है। याक एक घाटि एक कोड़ि पद हैं और जहां नाना प्रकार वचन बोलने के भेद । ए वचन सत्य हैं। र असत्य हैं। ऐसे निधार करता नथ प्रमारा लिए कथन जामैं होय सो सत्यप्रवाद नाम पूर्व है। याके राक कोड़ि षट पद हैं। जहां प्रात्मा की स्तुति बनायवे का तथा निश्चय व्यवहार रूप नयन करि आत्म-स्वभाव का साधना सो आत्मवाद-पूर्व है। याके छत्तीस कोड़ पद हैं और सहाँ बाठ मूल-कम के उत्तर मैद एकसौ अड़तालीस तिनका स्वरूप बन्धरूप जो आत्मा अमूर्तिक ए कर्म कसे बांधे सो बंधे पीछे जेते काल जावाधा पूरण न होय उदय नहीं आवै सो सत्त्व है। आवाधा पुरण भरा उदय होय सो अपना रस कर्म प्रगट करि जीवक सुखी-दुखी करें सो उदय, ऐसे बन्ध उदय सत्तारूप का परिणमना सौ कर्म-प्रवाद नाम पूर्व है। याके एक कोड़ अस्सी लाख पद हैं। जहां व्रत विधि व्रत का फल चारि निक्षेपणान का विस्तार इत्यादि जहाँ कथन होय सो प्रत्यास्थान-पूर्व है। थाके चौरासी लाख पद हैं। जहां अनेक विद्या साधने का विधान, विधानको कैसे साधिए सो विधान, विधान के सिद्ध होने योग्य तप जान जो मन्त्रतें जो विद्या सिद्ध होय ऐसे मन्त्र से फलानी विद्या सिद्ध भई तथा ऐसा फल कर या विद्या की इतनी सामर्थ्य है। अष्ट निमित्त-ज्ञान के भेद इत्यादिक कान विद्यानुवाद पूर्व में होय है। तहो निमित्तज्ञान के आठ भेद बताइये है। गाथा-अन्तरिक्वं भौमाए, मङ्ग सुर मिमित णाण विजणायो । लक्षण सुपणय छिष्ण घसु णिमित शाण भेदार ॥ १॥
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