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| देखें, तो भोजन नाहीं करें। करै तौ दोष लागे याका नाम दायक-दोष है। जो भोजन पृथ्वी, जल, हरितकाय पत्र पुष्प, फल, बीज इत्यादिक करि मिल्या होय. सो मिश्र-दोष सहित है ।६। भय से अधवा आदर से वस्त्रादिक
१३२ कोयनाचार पस्तिशीन कामो मुनीसारको हाहार देना. सो व्यवण (साधारण) दोष है । जा वस्तु का वर्ग नहीं फिरथा होय, अधकसी वस्तु होय, सो यतीश्वर नहीं लेंय याकूलेय तौ दोष लागे,याका नाम अपरिणतदोष है। डायति भोजन समय दाता के हाथ व तौला, भरत्याई, हांडी तथा और पात्र, खिचड़ी तथा व्यान तिरकारी तें लिपटे देखें तो गुरुनाथ भोजन नहीं करें। करें तौ दोष लागै, याका नाम लिप्त-दोष है।६। जो हाथ की चञ्चलता कर छाछ, घृत, दुग्धादि का मरना अथवा छिद्र सहित हस्तनिकर बहुत भोजन तो गिर जाय अर अल्प ग्रहण में आवे अथवा हस्तपुट को पृथक करके भोजन करना, सो त्यक्त-दोष है। ३०। र दश एषणा समिति के दोष हैं।
आगे च्यारि खैरीजि ( फुटकर ) दोष अथवा भुक्ति-दोष कहिए हैं। जहाँ शीत उष्ण वस्तु मिलारा सुख निमित्त स्थापना, ताका नाम संयोग-दोष है। ।। भोजन का प्रमाण तथा काल का प्रमाण ताकौ उलंधिक भोजन कर, तो यतिको दोष लागै, याका नाम प्रमाण दोष है। २ । भला भोजन, षट्रस सहित मिष्ट भोजनकौ, रति सहित स्वाय खुशी होय दाता की शुश्रूषा करतौ मुनीश्वरको दोष लामें, याका नाम अङ्गार-दोष है ।३। यतिको रूखा-सखा, रस रहित, प्रकृति विरुद्ध भोजन मिले तो अरुचि सौ नाय तो यतिकौं दोष लागै, याका नाम धूम-दोष है।४।र च्यारि खैरीज हैं। ऐसे उद्गम सोलह, उत्पादन सोलह, एषणा दश, खेरीज च्यारि। सब मिलि छयालीस दोष भय । इन टले शुद्ध भोजन हो है। इति छयालीस दोष। आगे बत्तीस अन्तराय कहिए हैं। जहाँ मुनि भोजन करतें कोई काकादिक जीव बीट करता दे, तो भोजन त । याका नाम काक-अन्तराय । है। गमन करते साधु के पग में अमेध्य जो मल लग जाय, तो भोजन नाहीं करें, याका नाम अमध्य-अन्तराय है।२। मुनि के भोजन करते वमन होय जाय तौ, भोजन तजै, याका नाम छर्दि-अन्तराय है।३1 मुनीश्वर को भोजन के लिये गमन करते समय कोई रोक देवे, तौ भोजन तजें, याका नाम रोधन-अन्तराय है।४। भोजन | समय पनि आपर्क तथा परके लोड चार अंगल या अधिक वारसा मैं तो भोज
ह चार अंगुल या अधिक बहता देखें,तो भोजन तर्ज, याका नाम रुधिर-अन्तराय
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