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है ।श साधु दुःख शोकादिकतें आपके अश्रुपात देखें अरु समीपवर्ती जनन का मरणादि कर अति रोदनविलाप श्रवण करें तौ भोजन तर्ज, याका नाम अश्रुपात अन्तराय है । ६ । भोजन करते दातार तथा पात्र कोई प्रगासाथ, जंया ना तो सोहर गर्जे, याका नाम जावन्धः-परामर्श-दोष है ।७। भानु प्रमाण तिर्यग निक्षिप्त काष्ठादि का उल्लंघन करना, सी जानुहतिक्रम-अन्तराय है।८। यति भोजन करते कोई मनुष्यों नामि नीचें मस्तकको नवायनिकलता देखें, तो यति भोजन तजे, याका नाम नाभ्यधोनिर्गमनअन्तराय है । और मुनि भोजन समय तजी वस्तु का ग्रहण करें, तो भोजन तर्जे, याका नाम प्रत्याख्यातसेवन अन्तराय है ।२०। भोजन करते यति सामने दूसरे से कोई जीव मरा देखें तो भोजन तज, याका नाम जन्तुवध-अन्तराय है । २२ । भोजन करतें काकादिक जीव ग्रास ले जाय, तौ यति भोजन तजें, याका नाम काकादि-पिण्डग्रहण-अन्तराय है । १२ । भोजन करत पात्र के हाथत ग्रासपिण्ड ममि में पड़े तो यति भोजन तजें, याका नाम पिण्डपतन-अन्तराय है । १३ । और साधु के हाथ में जीव स्वयं भाकर मर जाय तो भोजन तजै, याका नाम पाणिजन्तुबंध-अन्तराय है ॥२४॥ भोजन समय यति आमिष (मांस) मुर्दा देखें तो भोजन तणे, याका नाम मांसादि-दर्शन-अन्तराय है ।श भोजन समय कोई उपसर्ग होय तौ यति भोजन तर्जे, याका नाम उपसर्ग-अन्तराय है ।२६। भोजन करते समय यति के दोनों पांव के बीच में होय पंचेन्द्रिय जीव कोई गमन करता मुनि जानैं तो भोजन तजै, याका नाम पंचेन्द्रिय-जीव-गमन-अन्तराय है ।१७। भोजन करते दाता के हाथतें भूमिमैं पात्र पड़े, तो भोजन यति नहीं करें, याका नाम भाजन-सन्ताप-अन्यराय है । १८ । भोजन करतें मुनीश्वर अपना मल खिरया जान तो भोजन नहीं लेय, याका नाम उच्चार-अन्तराय है । २६ । भोजन करतें यति आपके मुत्र खिरचा जाने तो अन्तराय होय, याका नाम प्रसवण-अन्तराय है ।२०। भोजन समय मुनि प्रमाद वशाय भलमैं, शुद्र के घर में प्रवेश कर जोय, तौ अन्तराय करें, याका नाम अमोज्य-गृह-प्रवेशअन्तराय है 1२। यति का मर्धा कर पतन हो जाय, तौ अन्तराय करें, याका नाम पतन-अन्तराय है ।२२। भोजन समय कर्म करि, मलिक तथा प्रमाद तैं तथा तन की हीन शक्ति तें कबहूँ मुनि बेठि जाय, तौ अन्तराय होय, याका नाम उपवेशन-अन्तराय है ।२३। भोजन करते कोईको कुत्ता, बिल्ली काटिता देसितें भोजन तर्ज,