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लिए सब जानै। जैसे—काह देश के पुरुष का नाम बाबा है। तिसकं सर्व देश नगर बाबा ही कहे। सो याका नाम ठाम (स्थान) पूछिए तो बाबा के नामतें मिले तातै बाबा कहना याका नाम सत्य है।४। और शरीर के वर्ष की अपेक्षा करि कहना जो यह काला है. लाल है इत्यादिक कहना सो रूप-सत्य है। ५ । और वर्तमान काल में वस्तुकौं छोटी बड़ी कहना जो बड़ी की अपेक्षा ये छोटी है। छोटी की अपेक्षा यह वस्तु बड़ी है। ऐसा कहना सो प्रतीति-सत्य है।६। और नैगमनय करि वचन बोलिए सो व्यवहार-सत्य है। जैसे-कोई कमर बांध घरतै बिदा होय परदेशकं गया। अरु वाके घर कोऊ तब ही पूछे, जो फलाना कहाँ है तब वाके घरवाले कहैं, वह तौ फलाना देश गया। सो तुरन्त तौ ग्राम बाहिर भी निकस्या नहीं होयगा देश गया कैसे कह हैं। तौ इन घरवालों की तरफतें गया हो कहिए, सो व्यवहार-सत्य है । ७ । इन्द्र विषै ऐसा बल है जो चाहे तो पृथ्वीकी उठाय लेय। सो पृथ्वी तौ अनादि ध्रुव है। काहूनै उठाई नाही; परन्तु इन्द्र में ऐसी शक्ति जाननी। सो शक्ति अपेक्षा कहिए, सो सम्भावना-सत्य है। पानि शास्त्र के अनुसार नियमार्थन का सम्मान। जैसे-धर्म-अधर्म द्रव्य लोक प्रमाण हैं तथा जल की बूंद में असंख्याते जीव हैं। परन्तु प्रत्यत्त नाहीं। जिन प्रमाण हैं, सो सत्य है। थाका नाम भाव-सत्य है।।। कोई वस्तु की कोई वस्तुकं अपेक्षा देनी। जैसे—यह राजा कल्पवृक्ष सो वृक्ष नाहीं मनुष्य ही है; परन्तु वांच्छित दान देय है। ताकी अपेक्षा लेय कल्प वृक्ष कह्या याका नाम उपमा-सत्य है । २०। ऐसे कहे जो सत्य के दश भेद सो नय प्रमाण श दश ही सत्य हैं। तातें जो इन दश भेद वचननकों बोले सो सत्य है। ।। पर वस्तु का सर्व प्रकार त्याग सो शौच-धर्म है। २। पंचेन्द्रिय और मन का वश करना सो इन्द्रिय-संयम है और षटु कायक जीवन की दया रूप प्रवर्तना सो प्राण-संयम है। ऐसे दोय मैद रूप संयम-धर्म है।३। बाह्य आभ्यन्तर करि तप भेद बारह हैं। सो तप करना सो तप-धर्म है। 81 मन-वच-कायतें पर वस्तु के ममत्व भाव का त्याग, सो तथा तन, धन, कुटुम्बादि का त्याग सो त्याग-धर्म है।श बाह्य आभ्यन्तर दोय प्रकार परिग्रह का त्याग सो आकिंचन्य-धर्म है।६। चेतन अचेतन स्त्री का भोग अभिलाष
का त्याग सो ब्रह्मचर्य-धम है। सो आगे या ब्रह्मचर्य के दश अतीचार हैं सो कहिए हैं। शील व्रत का धारी । शरीरको श्रृङ्गार सुगन्ध लेपन नहीं करे। धोवना, पोंछना, सानादि तन को शुश्रुषा नहीं करनी। इत्यादि कहे |
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