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जो याको तेल चढ़ाय प्रसन्न होय है। केई कहै, या देव को सिन्दूर चढ़ाय राजी होय है। केई कहै, याकौं बड़ा रोट चढ़ाय सन्तुष्ट होय है। कोई कहैं याकू पीर्ण वस्त्र चढ़ानू यह नये देव है। कोई कहैं, या देव को गुड़ चढ़े है। कोई कहैं याकों मोदक (सष्ट बढ़ाई है। कोई कई पाको पाल, काल, पत्र, दोभ चढ़ाये प्रसन्न होय है। कोई कहे याकौं मद की धारा चढ़ावो। कोई कहै याकौ जीव का भक्षण चढ़े है। इत्यादिक अनेक लौकिक देव है। सो इनको चेष्टा राग-द्वेषलप जानि, सम्यग्दृष्टि जीवनकै सहज ही हेय भावरूप हैं। त्याग योग्य हैं। इनकी सेवा-भक्ति सुख देने योग्य नाहीं। रा संसारी देव हैं,ऐसा जानना । इति कुदेव कथन । जागे गुरु परीक्षा मैं शेय, हेय, उपादेय बताइए है--
गाथा-कोहाबीय कसायो, गन्धो गह तन्तमन्त च कत्ताए। पर बंचण पासंडो, पूजा सत्तार च्छाई कुगुरी॥
अर्थ-क्रोधादि कषाय सहित होय। ग्रन्ध जो परिग्रह ताका धारी होय। तन्त्र, मन्त्र, नाड़ा वैद्यक का करता होय । परको ठगनेहारे होय, पाखण्डी होय पूजा-मान बड़ाईकौ बाप चाहता होय ताकू कुगुरु जानहु । मावार्थ-जे अपना मान भए राजी होंय, अपना अपमान भरा क्रोधी होय, पापकों कोई आय नमस्कार करे स्तुति करे तासों खुशी हॉय, व मला भोजन दिये राजी हॉय, परको धनवान जानि ताकी विशेष शुश्रूषा पाव भादर करें। कोई धन अपनी नजरि लाय करै तोकौं भला सेवक माने, इत्यादि लतरा ते कुगुरु जानहु और परिग्रह धारिक आपकू गुरुपद मानता होय राग-द्वेष भाव सहित होय तथा बड़े धन का धनी होय और धन मिलायवे की इच्छा होय बहुत खेद खाय द्रव्य इकट्ठी करने को महा लोभी होय और अपने गुरुपद मनायवेकौं अनेक जन्त्र, मन्त्र, तन्त्र, वैद्यक, ज्योतिष इन आदि अनेक चमत्कार प्रकट करि, भोरे जीवनकौ विस्मय उपजाय मोहित करै, सो कुगुरु है और परके ठगवेकौं महाप्रवीण होय अपने चित्त की बात महागढ़ राखिक अपनी बुद्धि के बलते भोरे जीवन का धन हरवेको आप महा समता भाव धरै अनेक मिष्ट वचन बोले। आये भक्त का भले प्रकार सरकार करै। परको सन्तोष विश्वास उपजाय तितत पुजावना तिन भोरे जीवनकों अपने प्रति नमावना, सो कुगुरु है। जापकू गुरुपद मान हिंसा रूप प्रवर्तना अरु हिंसा का उपदेश देना। आप क्रियाहीन होय वाद्यप्रदाय के विचार रहित होय, उपसर्ग आये दीन होय, साता मये प्रफुल्लित होय। चाम, घास, बक्कल इत्यादिक
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