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चौंसठ चमर इन्द्रन के हस्तते दुरें हैं । ४ । अति रमणीक, महामनोज्ञ, अनेक शोभा सहित रतनमयो, मेरु समान उत्तुंग को धरै, सिंहासन है। ताके चारों पायन की जगह, च्यारि बैठे सिंहन के आकार रतनमयी महासौम्य मूर्तिक, सर्व अङ्ग सुन्दर, नेत्र, कर्रा, मुख, जिल्हा, केशावली आदि सर्व नख, मानो साक्षात् कोई धर्मात्मा श्रावक व्रत के धारी सिंह ही भक्ति के भरे सिंहासन धेरै तिष्टें हैं। ऐसा सिंहासन प्रतिहार्य है । ५ । भगवान् के शरीर की प्रभा का चौतरफ मण्डलाकार होना, सौ प्रभा-मण्डल है। तामें देखें जीवन कूं परभव केई (बहुत) दो हैं । ६ । अनेक जाति के वादिन ( बाजे) मधुर शब्द सहित एक रंग होय बाजना, सो दुन्दुभी प्रातिहार्य है । ७ । भगवान के मस्तक पर तीन छत्र फिरैं सो मानो तीन लोक की प्रभुताई बतावें है, सो छत्र प्रातिहार्य है । ८। ऐसे
प्रातिहार्य कहे। अनन्त पदार्थन देखने-जानने रूप प्रवर्तें, सो अनन्तज्ञान व अनन्तदर्शन कहिए । अनन्त पदार्थन के देखने-जानने से अनन्त ही प्रतीन्द्रिय सुख है। अन्तराय-कर्म के नाशतें अनन्त पदार्थ जानने की प्रगटी जो शक्ति सो अनन्तवीर्य है। ऐसे ए अनन्तचतुष्टय हैं इन सर्वकौं मिलाए जन्म के दश. केवलज्ञान के दश, देवकृत चौदह, प्रातिहार्य आठ, जनन्तचतुष्टय चार, सर्व मिल छयालीस गुण हैं। सीय गुण । 'जामैं पाइए सो तरणतारण, शुद्ध भगवान सम्यग्दृष्टिन करि पूष्यवे योग्य जानना । ऐसा भगवान् उपादेय हैं। इति सुदेव • लक्षस जागे कुदेव का लक्षण कहैं हैं
जहां ऐसे लक्षण होय सौ कुदेव । जो सरागी होय भक्त कूं देखि राजी होय अपना अविनयवान् को देखि कोप करें। ऐसा राग-द्वेषी होय, तिनकू लोक विषै भी और कोई-कोई जीव ऐसा कहे हैं जो यह देव रो तौ राज-सम्पदा देय सुखी करे है। ए देव कदाचित कोप करें तो दुखी करै रोग करें पीड़ा देय धन रहित करें मरण करे और कल्पवासी, भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी ए च्यारि जाति के देव हैं, सो योनिभूत देव हैं। जन्म-मरण सहित है। अपने किये पुण्य के फल ताहि भोगवे हैं। ए सौम्यदृष्टि, तिनकूं देखें सुख होय है । रा काकूं दुखी करते नाहीं और केतेक मोरे प्राणीनतें अपनी बुद्धि कल्पना करि देवनाम देव, स्थापन किए, सो सौकीक देव हैं। सोरा लोकनको आश्चर्यकारी हैं। सो ऐसा कहैं हैं । जो हमकों पूजौ तृपति करौ अनेक भोग योग्य वस्तु हमको चढ़ावो, तो हम तुमतें प्रसन्न होय हैं। ऐसी सुनि भोरे जीव, केतेक तो ऐसा कहैं हैं ।
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