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प्रत्याख्यान चारि, मिथ्यात्व और सम्मानिध्यात्व-ए सर्व इक्कीस सर्वघाती हैं। जे अपने घातवें योग्य जै गुस तिनकौं सर्व प्रकार नहीं घात सके। एकोदेश घातै, सो तौ देशघातिया कहिये और जे अपने घातवें योग्य पुरा तिपय सलार वात, सो सर्व घातिया कहिये हैं। ऐसे घातिया के दोय भेद कहे आगे जीवविपाकी, पुदगलविपाकी, भवविपाकी, क्षेत्र वियाको इन सबका स्वरूप कहिए है। तहाँ प्रथम ही पुद्गलविपाकी है, सौ कहिए है। शरीर पांच, अंगोपांग तीन, संहनन षट्, संस्थान षट,वर्ण चतुष्ककी बीस. स्थिर, उद्योत, बातम, निर्माण, अस्थिर, अगुरुलघु, अशुभ, साधारण, प्रत्येक, अपघात, शुभ, परघात-ए बासठि प्रकृति हैं, सो तो पुदगलवियाको हैं। इन सर्व का उदय शरीर स्कन्ध ऊपर ही होय है। जीव में इनका बल नाहीं। ताते पुद्गलविपाको कही हैं। इति पुद्गलविपाकी। आगे जीवविपाकी कहिये है। तहाँ घातिया की सैंतालीस, गोत्र की दोय, वेदनीय को दोय, जाति पाँच, चाल दोय, गति च्यारि, तीर्थकर उच्छवास पाप्ति-वपर्याप्ति, प्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, सुभग, दुर्भग, यशस्कीर्ति, अयशस्कीर्ति-ऐसे अठत्तरि प्रकृति अपना उदय जीव पै करि सुख-दुख कर हैं। तातै इनकों जीवविपाकी कहिए। इति जीवविपाकी। आगे क्षेत्रविपाकी। आनपूर्वी च्यारिश अपने योग्य अन्तराल का क्षेत्र तामें इनका ही उदय होय है। भावार्थ----जो जीव वर्तमान शरीर तजिक वक्रगति सहित अन्य पर्याय में उपजनेकौं जाय तब अन्तराल में कार्मण अवस्था के क्षेत्र विर्षे आनुपूर्वी का उदय होय है। इति क्षेत्रविषाकी। आगे भवविपाकी। आगे च्यारि आयुकर्मन का उदय अपने-अपने भव विर्षे हो होय है। तातै च्यारि आयु मवविपाकी जानना । इति मवविपाकी। रोसे पुद्गलविपाकी बासठि, जीववियाकी अठत्तर, क्षेत्रवियाकी च्यारि, भवविपाको च्यारि, ऐसे ए सर्व एकसौ अड़तालीस हैं । १४५। ऐसे कहे जो ए अष्टमूल कर्म सो द्रव्यकम है। र सर्व द्रव्यकर्म एद्धगलन के स्कन्ध जानना। सो इन अकर्मन करि समस्त संसारी जीव बंधे हैं। सो जीवराशि दोय प्रकार हैं। एकतौ संसारी एक मोक्षजीव । तिनमें संसारीन के दोय भेद हैं। एक भव्य एक अभव्य । तहाँ अभव्य राशि, अरु भव्य राशि अनन्सानन्त गुणे जीव और दूरमध्य, अभव्य, समानि कबहूं मोक्ष योग्य नाहीं तथा और भी केते मिध्यादृष्टि जीव मोहराग के जोर सो कम सोकलान (जंजीर) बधे मोहना के बन्दी खाने पड़े हैं सो मिथ्यात्व योग्य बंधानते