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अथानन्तर मोहो जीवनकजसे द्रव्य कर्म नबाव है तेसे ही नावें हैं। जैसे बाजीगर दण्डकरि बन्दरकों | अनेक बार नचावै है। तैसे ही सारी जीवनकों का बागा महारणी दर स बार नचावै है तथा || जैसे-कोई नट धन के लोभ से अपने एक तनके अनेक स्वांग धरि, लोकन कू दिखाय आश्चर्य उपजावे।
कबहूं राजा का स्वाग धरै, कबहूं रंक का, कबहूं स्त्री, कबहूं नर, कबाहूं सिंह, कबहू बकरी, कबहूं सर्प आदि अनेक स्वाँग अपने तन के ऊपरला खलका रूपी वस्त्र ताक फेरि-फेरि स्वाँग बदलि-बदलि तमाशगोरिको हर्षविषाद उपजावै है । तैसे ही यह जीवरूपी नट अपने कर्मजनित शरीर का आवरण ताको पलटि-पलटि अनेक स्वाँगकरि नाँचै है। अनेक स्वाँगधरि जगत् मैं नृत्य करता गमन करे है सो या जीव के गमन करने के मार्ग चौदह हैं। इनही चतुर्दश मार्गन में अनादि काल का जीव गमन कर है। सोही मार्ग बताइए हैं। माथा
गई इन्दियं च काये, जोए बेए कसाय पाणेया । संजम दंस लेस्सा, भविमा सम्मत सन्णि आहारे । गति ४, इन्द्रिय ५, काय ६, योग १५, वेद ३, कषाय २५, ज्ञान ८. संयम ७, दर्शन, लेश्या ६, भव्यअभव्य । मार्गणा, सम्यक ६, संझी २ और आहार २ ऐसे चौदह भेद मार्गणा हैं। अब इनका सामान्य अर्थ लिखिए है। तहाँ गति नाम-कर्म के उदय गति सम्बन्धी शरीरन के आकार धरना सो गति है। इन्द्रिय नाम-कर्म के उदयतें जेती इन्द्रिय अपने शरीर योग्य इन्द्रियन के आकार होंय सो इन्द्रिय मार्गणा है। सस्थावर नाम-कर्म के उदय करि त्रस और स्थावर पर्याय में जन्म लेना सो काय है। नोइन्द्रिय-कर्म के बलते अष्टपांखड़ी का कमलाकार द्रव्यमन के निमित्त आत्मा के प्रदेशन का चंचल होना सो मनोयोग है। स्वर कर्म के उदय वचन बोलने का क्षय, उपशम होना ताके निमित्त पाय आत्मा के प्रदेशन का चंचल होना सो वचन योग है। पंच प्रकार शरीर के उदयतें यथायोग्य काय का निमित्त पाय, आत्मा के प्रदेशन का चंचल होना सो काय योग है। ऐसे योग हैं। वेद-कर्म के उदय से स्त्री को चाहि तथा पुरुष को चाहि तथा स्त्री-पुरुष की थुगपत चाहि इत्यादि भाव सी वेद है। चारित्रमोह के उदय क्रोध-मानादिक कषाय रुप होना, सो कषाय है। जाकरि आत्मा स्वपर पदार्थनकौं जानें, सो ज्ञान है। मोह के तीव्र उदय करि विषयन में मोहित होय, दया विष प्रमादी होय प्रवर्तना सो असंयम है। अप्रत्यक्ष ज्ञान के उदय सहित आत्मा का वाताव्रत रूप युगवत प्रवर्तना, सो देश संयम है। सर्व