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मरै । सो पहले तहाँ ताँई आत्म प्रदेशन की डोरो पति रूप विस्तारै सो मारणान्तिक समुद्घात है। भावार्थतीन लोक क्षेत्र विषै ऐसा प्रदेश क्षेत्र नाहीं, जहां इस आत्मा ने अनन्त बार मारशान्तिक समुद्घात करि प्रवेश नाहीं स्पर्शा । सर्व आकाश क्षेत्रन में मारणान्तिक समुद्घात करें है। सो पाप के उदय का फल है । इति मारखान्तिक समुद्घात | ३|
ऐसे वेदना कषाय मारणान्तिक इन तीन समुद्घात सहित अशुभ तीन लेश्या सहित जोव वनस्पति में अनन्ते और स्थावर आदि स्थानमैं असंख्याते व मनुष्यन में संख्याते हैं। ऐसे तीन अशुभ लेश्या में समुदघात कला । शुभ तीन लैश्यान में समुद्धात कहिए है। तहां कषाय समुद्घात विषै तथा वेदना समुद्रघात विषै तो ! काप्रमाणे अशुभ या में कहि आए। मूल शरीरतें नवगुणे चौड़े शरीर प्रमाण ऊँचे ताही प्रमाण जानना | मारणान्तिक समुद्र्यात विषै पोत लेश्यावाले भवनत्रिक तथा सौधर्म ईशानवाले देव विहार कर कोई निमित्त पाय तीसरी नारकी पृथ्वी पर्यन्त जांय अरु तहाँ हो आयु अन्त होय मरण करें, सो जीव आठमी मोक्षशिला में बादर पृथ्वी काय में उपजैं। सो अपने अशुभ भावन की उपार्जना तैं सो जीव नव राजू क्षेत्र पर्यन्त आत्म प्रदेशको बधाय अपने उपजने का क्षेत्र स्पर्शे है। ऐसा जानना और तेजस समुद्घात में आत्म प्रदेश बारह योजन लम्बे, नव योजन चौड़े और सूच्यांगुल के संख्याते भाग ऊँचे विस्तरें हैं। तहाँ कोई देश में बड़ी वेदना प्रजाक होय तथा कोई देश में महा दुःख इति भोति करि भरचा होय । अरु ताकूं देखि कदाचित ऋद्धिधारी मुनि करुणा उपजै, तौ मुनीश्वर के दाहिने स्कन्धर्ते शुभ तेजस पुतला निकसे सौ बारह योजन चौड़े क्षेत्र ताई के जीवन की सर्व वेदना तत्क्षण मैटि, सर्व प्रजाको सुखी करे है। कदाचित् प्रजा ( देश जोवन ) कैं पाप का उदय श्रावै तौ ऋद्धिधारी मुनिकों को उपजै तौ वा में स्कन्धर्ते अशुभ तैजस निकसै, सो अपने विषय योग्य क्षेत्र भस्म करै । पीछे मुनि के आत्म प्रदेश निकस कोपतें अग्निमयी होय पृथ्वी को क्षय करि, पोछे मुनि के तन में प्रवेश करें, सो मुनि का तन भी भस्म होय । ऐसे तैजस दोय प्रकार है। सो तेजस समुद्घात जानना । इति तेजस समुद्यात ५। आगे आहारक समुद्घात का स्वरूप कहें हैं। तहां आहारक समुद्घात विषै एक जीव अपेक्षा कोई योगीश्वर को तत्वज्ञान विचार में संशय उपजै, तो ऋद्धिधारी मुनिकों ऋद्धियोगर्ते आहारक
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