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जीव हैं। अपते असंख्यात अधिक वायुकाय के जीवन का प्रमाण है। अग्निकाय के असंख्यातवें भाग घटते ।।
वेन्द्रिय जीव हैं। वेन्द्रियतें असंख्यात घाटि तेन्द्रिय हैं। तेन्द्रिय से असंख्यात घाटि चौइन्द्रिय हैं चौइन्द्रियतें । असंख्यात घाटि पंचेन्द्रिय हैं। ऐसे सर्व से थोड़े पंचेन्द्रिय हैं। तिनमें भी मिथ्यात्वो बहुत हैं पंच हो स्थावर में । सर्व कहे स्थावर तिनतें अनन्त गुरो जीव वनस्पति का प्रमाण जानना। इन पंच स्थावरन में सूक्ष्म जीवराशि
बहुत हैं, बादर थोड़े हैं। काहेतें सो बताइये है कि सूक्ष्म जीवन का क्षेत्र तौ लोक है। सर्व लोक सक्ष्म पंच स्थावरनतें जल घटवत् भर या है। बादर, सहायतै होय है। सो सहाय का क्षेत्र अल्प है। तात सक्ष्म राशि विशेष, बादर राशि थोड़ी रोसा जानना। सो र स्थावर विकलत्रय राशि, रातो सर्व मिथ्यात्व-समुद्र में मगन हो हैं और च्यारि गति सम्बन्धी पंचेन्द्रियन में भी मिथ्यात्व राशि तो बहुत है, अरु सम्यग्दृष्टि थोड़े हैं। सो अगली गाथा में सम्माधि धार गति सम्बनी सासादन मिश्र गुणस्थान अविरत तथा पंचम षष्टम से लगाय चौदहमा गुणस्थानवर्ती जीवन का प्रमाण कहिरा हैं
गाषा-वावण इकसय चउक्को, सत्ताय तिदसय कोडौए । सासा मिस्सा संजय, देस संजाय होयरगर भष्वा ॥ १६॥ . अर्थ—मध्यराशि मनुष्यन में—सासादन गुणस्थानवों मनुष्य बावन कोडि हैं और मिश्र गुणस्थानवर्ती मनुष्य एकसौ च्यारि कोड़ि हैं और असंयत चौथे गुणस्थानवी मनुष्य सात कोड़ि हैं और पंचम गुरास्थानवर्ती मनुष्य तेरह कोड़ि हैं। ऐसे सासादन लगाय पंचम गुणस्थानवर्ती कहे। सो उत्कृष्टपने कहे। इन अधिक नहीं होंय, रोसा जानना। इति मनुष्यन में गुरास्थानवी जीवन का प्रमाण कहा। आगे देव, नारकी, तिर्यंचमैं सासादन, मिश्र, असंयत तिनका प्रमाण, अरु पंचम गुणस्थानवर्ती तिर्यंच और छठे गुणस्थान तें लगाय चौदहवें गुणस्थानवर्तो मनुष्यन का प्रमाण कहिए हैगाया-सुरय सुणारय गतयो, सासामिस्सो असंजविण संखा । असंख पसु अणुवरती, पमतादो जो कोहि ति उड़ोय ॥१७॥
अर्थ-देव, नारक, तिर्यच यह असंयत सम्यग्दृष्टि, मिश्र सासादन और तिर्यंच देश संयमी र सर्व प्रत्येक असंख्यात जानना और प्रमत्त ते लगाय अयोगि पर्यन्त जीवन का प्रमाण तीनि घाटि नव कोड़ि जानना। भावार्थ-तीन गति सम्बन्धी सासादन, मिश्र, असंयमो देश संयमी तिनके प्रमाण की अधिक हीनता बताइए है।