________________
जीव मध्यम अपनाना के धारीखी चढ़े ऐसे जीव ८ऐसे ए कहे जोय युगपत एक समय ४३२ जीव वाधिक श्रेसि चढ़े हैं सो जानना । युगपत एक समय उपशम श्रेणी चढ़नेवाले क्षायिकतें जाधे इनही पदस्थवाले जीव २१६ जानना । कदाचित् केवलज्ञान का विरह काल पड़े तौ षट् महीना ताँई कोई जीवकू केवलज्ञान नहीं उपजै । अढ़ाई द्रोप मैं तो अन्त के आठ समय मैं 'बाईस जीवनक' केवलज्ञान होय । ताकी विधि---आदि के षट समयन मैं तीन-तीन जीव एक-एक समय मैं केवली होंय और अन्त के दो समय में दोय-दोय जीव केवली होंय, ऐसे अन्त के आठ समय मैं बाईस कहे । केई आचार्य, अन्त के आठ समयमै चवालीस केवली कहें हैं। सो आदि के षट समय मैं षट-षट, अन्त के दोय समय मैं च्यारि-च्यारि जीव केवली होय। कई आचार्य अठ्यासो केवली कहैं हैं। तहो आदि के षट समयन मैं बारह-बारह और जन्त के दोय समय मैं आठ-आठ ऐसे अन्त के समय में केवली होय हैं केई आचार्य अन्त के आठ समय मैं 'एकसौ छिहत्तरि' केवलो कहैं हैं। सो आदि के षट् समयन मैं चौबीस-चौबीस और अन्त के दोय समय मैं सोलह-सोलह- केवली होंय हैं। ऐसा विशेष जानना । र उत्कृष्ट कहैं हैं। इनसे अधिक नाहीं हो हैं, ऐसा जानना। ऐसा सामान्यपने चौदह गुणस्थान सम्बन्धी जीवन की संख्या कही। विशेष श्रीगोम्मटसारजी के "जीवकाण्ड" तें जानना । यहाँ राह पावने के निमित्त तथा यादि राखने-सीखने निमित्त कथन किया है। सो धर्मात्मा जीव इस समान्य कथन को जानि महाग्रन्थन मैं प्रवेश करो, तातै मोह मन्द होय, सम्यक श्रुत का प्रकाश होय । रोसा जानि आत्म-कल्याणी जीवनकौं इन ग्रन्यन में प्रवेश करना योग्य है। विशेष यह जो ऊपर कह सम्यग्दृष्टि तिन विर्षे क्षायिक सम्यग्दृष्टि बहुत है और तिन" असंख्यातवें भाय भयौपक्षम सम्यग्दृष्टि हैं। इन” असंख्यातवें भाग उपशम सम्यग्दृष्टि हैं। उपशमते असंख्यातवें भाग मित्र सम्यक धारी हैं। मित्रत संख्यातवें भाग सासादनी हैं तहां विशेष यता जो सर्व ते सम्यम्दृष्टि देवलोक में बहुत है। तिनमैं भी तीन गति के सम्यग्दृष्टिनते तथा चारौं गति के सम्यग्दृष्टिनतें प्रथम युगलमैं असंख्यात गुने बहुत हैं। ऐसे ध्यासें गति संसार मैं तिष्ठे सो जीवन की संख्या, अरु अपनी-अपनी गति सम्बन्धी गुणस्थानवी जीवन की संख्या कही। सो इन संख्या मैं संसारी जीव तन धरता, मरता, शुमभावन का फल भोगता, जमादि का समय करे है।