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मांसादि कठिन अवयव करना सो इनका नाम खलरूप है और केतक परमागूनकौं श्रोणित वोर्यादिक रसभाग शम ताले बवात पाणन बोले नगलन गरिरामाय रस रूप करै। ऐसे अन्तर्महुर्त काल यथायोग्य ताई क्रिया करै, सो आहार पर्याप्ति कहिर है। इन ग्रहे पुद्गल स्कन्धनकौ आत्मा आकर्षण करि शरीररूप कर सो शरीर पर्याग्नि है। इहाँ प्रम-जो तुमने कहा कि आहार पर्याप्ति करते पुद्गल हाड़ मांसादिरूप करै है. सो वैकियिक बाहारक शरीरन मैं हाड़ माँस कैसे सम्भवै ? ताका समाधान—जो पुद्गल तीन शरीर रूप होने योग्य होय ताको आत्मा भाकर्षण करके खलरूप रसरूप करे है। सोसलरूप करै तिनकै तो कठोर अवयव अपने शरीर योग्य बनावै है अरु रसरूप भई तिनके बह चलें ऐसे रसरूप यतले अवयव बने हैं। पोछे अपने-अपने शरीरन के अङ्गोपाङ्गरूप परणमै हैं। तहाँ आहारक वैक्रियिक शरीरनके तौ उन प्रमाण अङ्गोपाङ्ग बने हैं। औदारिक शरीर के औदारिक शरीर प्रमाण अङ्गोपाङ्ग बने हैं। ऐसे अपने-अपने शरीर पदस्थ योग्य घुद्धगल स्कन्धन का परिशमन है। सो सहज ही परणमै हैं। असहाय, बिना यतन परिणामन जानना। ऐसे पाहार पर्याप्ति करि पीछे तिन ग्रहे परमाणु कठोर तथा नरम अव्यवरूप पुटुगलन का शरीररूप बन्धान करना सो शरीर पर्याप्ति है। किया जो शरीर ताके यथायोग्य इन्द्रियन के आकार स्थान के स्थान होना, सो इन्द्रिय पर्याप्ति है। जा शरीर में श्वासोच्छवास लेने के स्थानक होना, सो तिनत पवनको अङ्गीकार करि बाहिरत भीतर लेना पीछे बाहिर काढ़ना। ऐसे पुद्गलीक आकार शरीर में होना, सो श्वासोच्छवास पर्याप्ति है। ऐसे पीछे पिन स्थाननते वचन बोल्या जाय, ऐसे पुद्गलीक आकार शरीर में होना, सो भाषा पर्याप्ति है । हिरदै विर्षे विकल्प करने का आकार तातें शुभाशुभ विचार कीजिए, ऐसा अष्ट पांखड़ी का कमलाकार द्रव्यमन पगलीक स्कन्ध का परिणमन सो मनः पर्याप्ति है। इति पर्याप्ति। आगे प्राणन का संक्षेप स्वरूप कहिरा है। तहां शरीरादि यथायोग्य इन्द्रियन में अपने-अपने विषय ग्रहण की शक्तिरूप परिखमान, सोस कहिए । तहाँ पंचेन्द्रिय अपने विषय में रंजायमान करे, सो जैसे-स्पर्श इन्द्रिय अपने योग्य अष्ट विषय तिनका ! निमित्त मिले सुख-दुख करने की शक्ति सो स्पर्श इन्द्रिय प्राण है। जहां रसना इन्द्रिय अपने योग्य पंच विषय तिनमें रंजायमान करे, सो रसना इन्द्रिय प्राण है। घ्राण इन्द्रिय अपने योग्य दोय विषयन में रंजायमान