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सावारहित क्रिया रूप प्रवर्तन, सो सकल संगम है। ताके पंच भेद हैं। दर्शनावरणीय के प्रयोपशमतें स्वपर के देखने की शक्ति सौ दर्शन है। कषायनमें रजायमान योग सो लक्ष्या है। मोक्ष होने योग्य सम्यदर्शनादि सामग्री प्रकट होने की नाहीं, सो अभव्य है। मोक्ष होने योग्य रत्नत्रयादि सामग्री प्रगट होय तार्के, सी भव्य है। ता भव्य के तीन मैद हैं। जीव अजीव तत्वन का भले प्रकार जानपना दृढ श्रद्धान सो सम्यक्त्व है । सो तस्व श्रद्धान तथा तस्य श्रद्धान करि घट् भेद रूप है। मन का समीपम होने योग्य तथा मन का समीपम नहीं होने योग्य ऐसी की सही नाम है। दारिक, वैनिधिक आहारक इन तीन शरीर खप पुद्गल ग्रहण सो बाहारक है। कार्मश अन्तराल में हम तीन शरीर का ग्रहस नाहीं, सो जनाहारक है। ऐसे जीव के आवागमन करने के चौदह मार्ग कहे और भी जीव के गमन के स्थान हैं, सो कहिए हैं
गामागुन जीवा पज्जती, पाना सराणा मंग्गण मोद। उपमोगोविध कनहो, बीसन्तु परवना मणिदा ॥
अर्थ-तहाँ गुणस्थान जीव समास पर्याप्त प्राप्त संज्ञा चौदह भार्ग सा उपयोग ऐसे इस गाथा में बोस प्ररूपणा जानना । अब सामान्य अर्थ-तहां प्रथम गुणस्थान का सामान्य अर्थ -तहां दर्शनमोह ३, अनन्तानुबन्धी ४ इन सात कर्म प्रकृतिन के उदय जीवकों तत्त्व श्रद्धान भाव का होना ताकरि पंच प्रकार मिथ्यात्वरूप रहना सो मिथ्यात्व गुणस्थान है। इसके होतें जेते गुरु होय सो मिध्यात्व गुरु है। तार्ते माका माम मिध्यात्व गुणस्थान है। प्रथमोपशम सम्धकधारी अपने योग्य जन्तर्मुहूर्त काल पूरा करते, उत्कृष्टपने छः बावली काल बाकी रहतें अनन्तानुबन्धो व्यारिमैं ते कोई एक कषाय का उदय होतें मिथ्यात्व रहित अनन्तानुबन्धी सहित होय सो सासादन सम्यक कहावे है। सो मह सासादन मिथ्यात्व समानि गुण को धरें हैं। जैसे हर भोजन करि पीछे वमन करिए ताका लेश रह जाय अल्पकाल क्षीर का स्वाद रहे पीछे जाता रहेगा। जैसे ही सम्यक पाय कैं ताक वमन कहिए तजि मिथ्यात्वका जावै है । सम्यक काल है तारौं सम्यक का है । तातें सासादन सम्यक है। मिश्रमोह के उदयतें मिश्र श्रद्धान होय है। जैसे मिश्री अरु दही मिलाके खाये वाटामिष्ट स्वाद दोऊ एकै काल बावै । तैसे ही मिथ्यात्व जरु सम्यक इन दोऊ रूप एक श्रद्धान होय है ताते याका नाम मिश्रगुणस्थान है। दर्शनमोह को तोम अनन्तानुबन्धी च्यारि इन सातन के क्षयोपशमतें भया जो जात्मा क्टू
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