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होय ताके जप्त, आगम, पदारथ असति हैं। ऐसे काल कौं यम नाम जीव माननेवाले का भ्रम दूर करि शुद्ध सरधान कराया। इति काल द्रव्य-जड़ को यम माननेहारे जीवन का सरधान पलटन कथन ह
आगे केई मतवारे अजीव वस्तून तें जीवतत्त्व वस्तु उपजते मानें हैं ताका सम्बोधन कथन कहिये है । केई अल्पज्ञानी, पश्च अजीव वस्तूनकों मिलाय कर जीव की उत्पत्ति मानें हैं ऐसा कहें हैं कि जो जीव वस्तु जुदी ही नाहीं, अजीव तत्वन के मिलाप तैं एक जीव शक्ति उपजे है। जैसे--अजीव वस्तु-जड़ द्रव्य जे महुआ बेरजड़ी, गुड़, दही इत्यादि अचेतन वस्तु विषै— मित्र मित्र देखिये. तो मद शक्ति नाहीं अरु इन इकट्ठी कर यन्त्र में धरि इन सबका अर्क काढ़िये है, ता अर्क जो दारू, ता विषै मद-शक्ति प्रगट होय है। सो मद भये नाना शक्ति प्रगट होय अनेक रिस जो तारें हैं मह उतर गये नाना कौतुक करने की शक्ति मिट जाय है। तैसे ही पृथ्वी, अप, तेज, वायु और आकाश - इन पंच तरव के मिलाप कर जीव-शक्ति प्रगट होय । भिन्न-भिन्न देखिये तो जीवत्व शक्ति काहू में नाहीं, मिलाप तैं जीव होय हैं। जब शक्ति प्रगट होय तब नाना देखने-जाननैमयी क्रिया करे है। अरु जब तवन का मिलाप छूट जाय, तब पंच ही तत्व अपने-अपने तरवन विषै मिल जाय हैं। तब शक्ति भी मिट जाय है। तहां वे एक दृष्टान्त देय अपना मत पोषै हैं सो सुनो।
दोहा - पवन पेंच आंटी परी, धर्मो वधु नाम निकस देव बाहर पर्यो नाम ठाम नहिं ग्राम ॥ १ ॥ ऐसा इस तत्ववादी के मतमैं कह्या है जो पवन चलती मैं ( वेगमैं ) आँटी पड़ गई, ताके योग रज, बालू, रेत, पत्ता, तिणकादि पदारथ उड़ने लगे, जो सबने देखे। तब बाका नाम सबने बधूरचा धरया । विस्तार भया पीछे पवन का पेच पड्या था सो मिट गया। तब अधूरे का भी नाम मिट गया तैसे ही अँधूरे को नई पंच तत्त्वन का मिलाप मिटता नाहीं, तैते कालतौ जीवनामा विकार प्रगट भया और सबने देखा, परन्तु जब तत्व विधुरै सो तो अपने-अपने तरवन में मिलें। तब देखिये तौ जीव तत्व तो कछू वस्तु नाहीं 1 ऐसा कई तत्त्ववादीन का मत है। तिनके मिथ्यात्व दूर करने कौं स्याद्वादी कहें हैं। भो तत्त्ववादी ! तूं सुनि सिंहन के गर्भ मृगन का अवतार होता नाहीं । मृगी के गर्भत सिंह का अवतार होता नाहीं । तैसें
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