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अपने तैजस शरीर के आकार आत्मप्रदेश अन्तराल में राख. पलटै नाही, सो मनुष्यगत्यानुपूर्वो-कर्म है। २ ।। तिर्थच गति में उपजनेहारा जीव जा कम के उदय जा शरीरको तजि आवै ताका आकार उपजने के संस्थान । २ ताई लिये आवे और रूप नाहीं होने देय, सो तिर्यंचगत्यानपुर्वी-कर्म है।३१जा कर्म के उदय नरक में उपजनेहारा । जीव पर-गति का जैसा शरीर तजे तैसे ही आकार नरक मैं उपजने के संस्थान ताई आवै आत्म प्रदेश और रूप नाहीं होंय, सो नरकगत्यानुपूर्वी-कर्म है।४। ऐसे पूर्वी हैं। आगे पंच शरीर स्वरूप कहिए हैं-तहां जा कम के || उदय वैक्रियिक शरीर रूप पुद्गलन कं परिणगाय जरीन का हवा की ५.५ साल से देवनारकी होय, सो वैक्रिषिक शरीर है ।श जाके उदय आहारक जाति शरीर रूप पुगगलन के स्कन्धकौं परिणमाय आहारक शरीर का बंधान होय, सो आहारक शरीर है। २ । जा कर्म के उदय पुद्गल का ग्रहण करि मनुष्य तिर्थच के शरीरमयी परिणमावै, सो औदारिक शरीर है। ३ । जा कर्म के उदय तेजस जाति के पुद्गलनकौं ग्रहण करि
आत्मा शरीर के बंधान रूय करें, सो तैजस शरीर है।४। संसारी जीव पुरातन अगले कर्म के शुभाशुभ परिणाम तिनत ज्ञानावरणादिक कर्मरूप होने योग्य जे कार्मणवर्गणा पुद्गल स्कन्ध तिनक ग्रहण करि अष्ट कर्मरूप शरीर का बंधान करै, सो कार्मण शरीर हैं। ५। इति शरीर भये। आगे पंच बंधान व पंच संघात का स्वरूप कहिए है, सो जैसे-दिवाल को मारा, ईंट पत्थरादि इनकर दिवाल खड़ी करिये ऐसा तो बंधान है। ता दिवाल 4 लेप करि साफ करिए, सो संघात हैं। तैसे ही शरीरत के बन्धान संघात हैं। तहां इन पंच शरीरन के नस, हाड़ मासादि अवयवन का बन्धानकरि शरीर का करना, सो बन्धान है। ते पाच जानना । अरु इन शरीरन में वातादि लपेटन रूप सफाई, सो पंच संघात है। इति बन्धान संघात । आगे पंच जाति का स्वरूप कहिये हैंतहाँ जाके उदय एकेन्द्रिय का क्षयोपशम पावै ताके स्पर्श इन्द्रिय सहित जो राकेन्द्रिय का शरीर तामें आत्मा का रहना, सो रकेन्द्रिय जाति है। ।।जा कर्म के उदय स्पर्श व रसन इन दोय इन्द्रिय के क्षयोपशम सहित शरीर में आत्मा का रहना, सो इन्द्रिय जाति है। राजा कर्म के उदय स्पर्शन, रसन, प्राश इन तीन इन्द्रिय के क्षयोपशम सहित शरीर का धारण, सो ते इन्द्रिय जाति है।३। और जा कर्म के उदय स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षु-इन च्यारि इन्द्रिय के क्षयोपशमसहित शरीर का धारना, सो चौ इन्द्रिय जाति है। जा कर्म के उदय पांचों !