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जात सर्व केवली भाषित सरधान कराया। अरु जाके मत विषै मेघको देवनाथ इन्द्र मानें ताके आप्त आगम पदारथ सत्य नाहीं होय हैं। इति मैघ जड़कों देवनाथ मानें था ताका सन्देह निवारक कथन । ८ ।
जागें और भी कोई भोले जीव मन्द ज्ञान तें अजोवतत्व में जीवतत्त्व का भाव मानें हैं। इस अचेतन काल द्रव्यकों ऐसा कहैं हैं । जो यह कालद्रव्य है सो यम है। सो यह भगवान हजूर के पास का रहनेहारा सेवक है। सो यह भगवान की आज्ञा पाय जीवनकों शरीर में तैं काढ़ ल्यावें है । यह यम महानिर्दयी है। सो जीव मोह के योग तैं कुटुम्ब नहीं तभ्या चाहे हैं । तिन कुटुम्ब में तथा ता तन में सुखी हैं। ताक सोंटा तैं मारि-मारि महादुखी कर जोरावरी शरीर तैं काढ़ि ल्यायें हैं। कई जीव, भगवान के भगत हैं तिनकू मारै नाहीं । तिनके तन में छापे तिलक कण्ठ में काष्ठ को माला देखि वार्के तन तैः दूर तैं ही विनय हैं काढ़ लाये हैं। परन्तु छोड़ता काहूक नाहीं । फेर कैसा ही समय होय, रात होय दिन होय, शीत उष्ण, बरसा, सुखिया, दुखिया होय. शादी होय या गमी होय, भोजन करता होय, सूता होय, धनधारी होय, रोगी होय, निरोगी होय इत्यादिक चाहे जैसा समय होय; परन्तु दया रहित यम काहू कौं छोड़ता नाहीं। ऐसा विभ्रम उपजाय कैं अजीव तत्त्व विषै जीवत्वभाव की कल्पना करें हैं। तिनको कहिये है। हे भाई! भगवान तौं काहू कौं मारता नाहीं और काहू कौं मारने की आज्ञा भो करता नाहीं । वह भगवान जगत् का पिता सर्व का रक्षक दयानिधान, वीतराग, केवलज्ञानी, शुद्ध आत्मा, निर्दोष काहू के मारने का विचार भी करें नाहीं। यहां भी लौकिक मैं किसी कौं कह काहू कोई मरवावें तो ताक मी पाप लगाघ दण्ड पहुंचाइये है । तातें अल्प से धर्मधारी जीव होय हैं सो भी पाप डर ऐसा वचन नाहीं कहैं जो तूं याक मार। कोई कषाय के वश होय कहै हो. तो ताके धर्म कूं दोष लागे और लौकिक में कहैं यह महापापी है, याने फलानेको फलाने के हाथ मराया है, ऐसा लोक भी कहैं हैं। शास्त्रनिविषै भी ऐसा ही उपदेश दे हैं। जो मन-वचन-काय कृतकारित अनुमोदना इनका पुण्य-पाप में फल एक-सा है। सौ हे भाई! तूं विचार। जो जगपति दयानिधान । वीतराग भगवान, पर के मारने का वचन कैसे कहें। तातें ऐसा दोष भगवान को लगावना योग्य नाहीं । जो कोई निर्दोष को दोष लगावें ताक महापापी कहिये । तातें भी भव्य ! भगवान है सो तौ निर्दोष है। वीतराग, दया भण्डार, सर्व का रक्षक है।
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