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अनेक प्रकार के बादल अरु दीरघ गरजना के शब्द कौन करै है ? और तुम पुद्गल बन्ध कहाँ हो, सो पुद्गल || अचेतन में ऐसी शक्ति कैसे सम्मवे। ताका समाधान जो हे भाई! तेंने कही कि शब्दादिक की शक्ति इन्द्र बिना कैसे बनें। सो हे सुबुद्धि पुगल को शक्ति बड़ी ह देशि चिन्तामशिर जड़ है तामैं मनवांछित देवे की शक्ति है पारस पाषाण पड़ हैं उसमें लोहकों कंचन करने की शक्ति हैं कल्पवृक्ष है सो जड़ है। तामैं वांछित फल देवे के शक्ति है और-और अनेक ओषधि हैं सर्वजड़ हैं, तिनमैं अनेक रोग खोवन की शक्ति है और धतूरा में ऐसी शक्ति है जो विवेकी का ज्ञान मंगिकरि नाशै है? इत्यादिक जड़ वस्तुन में र शक्ति है कैनाही? और देखि हल्दी पीत है साजी श्याम है तिन दोनोंकै मिलाये से लाली होय है और देखो चकमक अर लोह पाषाणके मिलाप करि झाड़ वृत्त दाह करने की शक्ति है कि नाहों। रोसी अगनि उपज है। इत्यादिक और भी अनेक शक्ति पुद्गल द्रव्य मैं है। तैसे ही मेघ की गर्जना का शब्द भी तूं पुद्गल स्कन्धमयी जानना। तात हे भाई! था मैघ वि. जीवत्वपना नहीं, यह अचेतन-जड़ है तात तूं इस जड़ द्रव्य विर्षे जीवतत्त्वभाव मत कल्पना करे। यह देवनि का नाथ इन्द्र नाहीं। तूं कहेगा कि इस मेघ के तो सब जगतमैं इन्द्र ही कहैं हैं सो है भाई ! जे भोले, सांचे शास्त्रज्ञान रहित जीव हैं तिनने याका नाम रूढ़ित इन्द्र घर लिया है जैसे कोई भने पुरुष का नाम इन्द्रदत्त धर लिया होय । सो इन्द्रदत्त तो ताकों कहिये जो औरनकों इन्द्र पद देय, यह तो भूखा-दीन है। सो याका नाम शूदिक नयतै इन्द्रही कहिये है। तैसे ही आकाश वि. बिना सहाय जल बरसता देखि गरज शब्द होता देखि भोले प्राणी देवत्वभाव की कल्पना करि इन्द्र नाम कहैं। बाकी ( वास्तव में) यह इन्द्र देवन का नाथ नाहीं। चेतना नाही, ज्ञान सहित नाहीं, यह मैघ है सो पुद्गल में स्कन्ध ही वर्षा ऋतु का निमित्त पाय जलमयी होय हैं जैसे-शीत ऋतु का निमित्त पाय सर्व आकाशमैं पुद्गल महाशीत रूप होय हैं उष्ण ऋतु का निमित्त पाय सर्व आकाश विर्षे पुदगल स्कन्ध उपण रूप होय हैं। सो इन तीनों कात का कोई कर्ता नाहीं। अनादित ऐसा ही स्वभाव है जैसे—काल का निमित्त होय ताही प्रमाण पुद्गल रूप परणमैं हैं। ऐसा तूं निश्चय जानना। इस मेघ ङइन्द्र कहैं हैं सो यह इन्द्र चेतन नाहीं, जड़ है। तातै भो भव्य ! जे विवेकी हैं तिनको अजीव विष जीव मानना योग्य नाहीं। ऐसे मैध अचेतनत्व विर्षे इन्द्र पद देवनाथ मानने का सरधान मिटाय